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रावण-वंश
। जब देखा तेज मन्त्रियों ने, सब इन्द्र को समझाने लगे । कुछ सोच समझकर काम करो, सव द्रव्य काल बतलाने लगे ॥
दोहा
सुर सुन्दर संग्राम मे, जिसने दिया हराय । लंका किष्किन्धा लई, शक्ति बड़ी कहाय ॥
. जिस कारण जा करे जग, वह काम नही अब बनना है । 'जलती ज्वाला बीच, पतंगो के समान जा जलना है || आपस मे सहमत होकर, अन्तिम यह सवने पास किया । सुर संगीत प्रान्त यम को देकर वही बात को दाव दिया ||
दोहा
॥ ऋक्ष नगर ऋक्ष राज को, किष्किन्धासुर राजा ।
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दे आधीन अपने किये, दिन दिन बढ़े समाज ॥
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फिर गायन रंग अति होने लगे, जय जय शब्द ध्वनि न्यारी ।
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चतुरंगी सेना सजी गगन मे, धूम विमानो की न्यारी ॥
लंका मे प्रवेश किया, दशकधर दान किया भारी । दई जागीर योद्धों को, घर घर मंगल गावे नारी ॥ '
दोहा
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सूर रंज के शिरोमणि, इंन्दुमालिनी नार । बाली सुत' जिसके हुआ, शूर वीर बलधार ॥ पुनरपि सुत दूजा हुआ, सुग्रीव दिया तसु नाम । सुप्रभा हुई कन्या की, तीजे शुभ अभिराम ॥ ऋक्ष रज घर भामिनी, हरिकन्ता शुभ नाम । नील और नल सुत हुए, सुन्दर कला निधान || सुर रज ने किष्किन्धाका, बाली सुत को राज दिया । और मन्त्री पद पर योग्य समझ, सुग्रीव कुमर को नियत किया ||