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वीर बाध
वीर बाध दोहा
रानी पे आपत्ति का आकर गिरा पहाड़ | इससे बचने के लिये करने लगी विचार | यह दृश्य भयानक ऐसा था, योधे भी धीरज खोते थे । प्रलय काल भी पहुंचा. अनुमान ये जाहिर होते थे | अनुराधा ने समझ लिया, अब यहां पर रहना गलती है । क्योकि इस शक्ति के अगे, ना पेश हमारी चलती है ॥
दोहा
बुद्धिमान् करते सदा, काम समय अनुसार । अनुराधा ने भी किया, हिंतकर निजी विचार ॥
नयनो से नीर बरसता था, महारानी के जो हितैषी थे ।
मिल गये बहुत खर दूषण से, जो कृतघ्नी और द्वेषी थे | लिये सदा के पति परमेश्वर, क्षत्राणी से दूर हुआ । और बिना गर्भ ना पुत्र कोई, होनी का ध्यान क्रर हुवा ॥ जो भी कुछ हाथ लगा रानी के, हीरे पन्ने आभूषण । कर साहस वहां से निकल चली, निज करमो को देती दूषण ॥ गाना नं १३
कर्मों के देखो सारे, कैसे है जाल जी ।
कोई फिरे वन वन में, कोई निहाल जी ॥ कल क्या दृश्य था सामने, और आज मेरे क्या है । आगे पता क्या आयेगा, मुझ पर बवाल जी ॥ शरणागत आते थे, जिन्हो का आसरा करके । । हम निराधार क्या कर्मो ने कीये पैमाल जी ॥
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