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वीर नाघ
कर्तव्य किया खर दूषण जो, नीति व्यवहार से बाहिर है। । अन्याय का सिर होता नीचे, यह उदाहरण जग जाहिर है ।
अन्याइयो से जो डरता है, वह भी संसार मे कायर है। अन्याय के आगे दव जाऊ, मेरी जमीर से वाहिर है ।
आनन्द पति के साथ गया, और ठाठ-बाट सब रहने का। कत्तव्य है अब इस दःख को भी, सन्तोष के द्वारा सहने का ।। जो काल के सन्मुख लड़ता है, उसको नही काल भी गहने का। यदि गह भी ले तो डर क्या है, जब धर्म है तन के बहने का। क्षत्री पैदा करने वाली, ना दुनिया में भयं खाती है। लिये धर्म के और शुभ नीति के, वह खेल जान पर जाती है । अन्यायी कर अधर्मी सब, मेढक होते बरसाती है । या यो ममझे कुछ समय लिये तारे होते प्रभाती हैं ।। न्याय तोड कर अन्यायी, जो पद अन्याय का पाते है । ऐसे ही जो अन्याय को तोड़े सो न्यायी कहलाते हैं ।। अपना-अपना मौका है, यहाँ द्वेष की कोई बात नहीं। दृष्टिगोचर दो शक्ति हैं, पर एक एक के साथ नहीं ।
दोहा ' प्रतिपक्षी है पुण्य का, पाप प्रत्यक्ष कहाय।
जो मार्ग सत्य धर्म का, अधर्म का मग नाय ।। । -दिवस किस तरह शुभ परमाणु लेकर सम्मुख आता है। प्रतिकूल अधेरा रजनी का, कैसा प्रभाव जमाता है ।। दुर्जन सज्जन का फर्क यही धनी और निर्धनी मे है। । जो अन्तर साता असाता मे वही गुणी और निर्गणी मे है ।
जड चेतन,कोई चीज नही जिसका कोई प्रतिपक्षी ना हो। । वह काम ठीक बनता ही नहीं, जिस काम मे दिलचस्पी नाहो ।।