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रामायण
मान माहात्म्य कहां जिन्हों की, जीते खुस जावे धरती । आरम्भ कहो किस गणना मे, उलटी दुनिया निन्दा करती ॥ अब शुभ दिन वही धन्य होगा. शत्रु की शक्ति तोड़ेगा । तब पुत्रवती हूँ समझूगी, सम्बन्ध लंक से जोड़ेगा ।
दोहा देखूगी जब अरि को, मुझ कारागर मांह ।
तब ही आत्म प्रसन्न मम, इस दुनिया के मांह ॥ कुसुम व्योमवत् सब आशायें, हृदय मेरा जलाती हैं। जैसे बागड़ की प्रजाएं. सब घटा देख रह जाती है। क्योकि शत्रु शक्तिशाली, और पीठ भी जिसकी भारी है। जो तुमने पूछी बात मेरे, हृदय मे लगी कटारी है ।
दोहा माता की जव यह सुनी, हृदय विदारक बात ।
जननी के यह भाव सब, समझे तीनो भ्रात ॥ तीनों राजकुमार परस्पर, ऐसे जोश दिखाते हैं।
और उछल गर्ज करके सब ही, माता को धौर बन्धाते हैं होनहार बाल अपने, भावी कर्त्तव्य बताने लगे। क्षत्राणी का दूध पिया था, उसका असर दिखाने लगे।
दोहा विभीषण कहे मात जी, है, क्षत्री के पूत ।
आशा तव पूर्ण करें, तो ही जान सपूत ॥ तोही जान सपूत भ्रात दशकन्धर योधा भारा। प्रगट होत ही भानु के, तारागण करे किनारा ।। और साथ में कुम्भकर्ण हैं, वीर महा बलवारा । अष्टापद को देख केसरी, झट ही करे किनारा ॥