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रावण-वंश
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दौड़ मात मै पुत्र तुम्हारा, जन्म इस कुल में धारा । गर्ज मै जब लाऊंगा, मानिन्द बिजली के कड़क पड़ कुम्भस्थल दल जाऊंगा।।
दोहा दशकन्धर कहने लगा, दे माता आदेश । विद्या आवे साध के, शक्ति बढ़े विशेष ॥
आजा ले निज मात की, पहुंचे वन मंझार । शुद्ध तन मन कर साधली, विद्या एक हजार ।। भानुकर्ण ने पांच लई, और चार विभीपण पाई है। षष्ठोपवास कर शस्त्र साधा, चन्द्रहास वरदाई है ।। क्षेम कुशल से घर आये, सब दिन २ कला सवाई है। एक शेर दूजे काठी अब, देख मात हुलसाई है ।। -
दोहा विद्या साधन की विधि, ग्रन्थो से पहिचान ।
कथन यहां पर ना किया, समझो चतुर सुजान ।। गिरि वैताड दक्षिण श्रेणी, सुर संगीत पुर जान । मय नरेश केतुमती, रानी कला निधान ।। मंदोदरी कन्या थी जिसके, जैसे नल कुबेर कुवरी । ' रत्नरवा दशकंधर सुत से, नृप ने उसकी शादी करी ।। अब लगा पुण्य भी बढ़ने को, कोयल सम मीठी वाणी है। शक्रेन्द्र के घर इन्द्राणी ऐसे मदोदरी रानी है।
दोहा एक दिवस गये भ्रमण को, दम्पति बैठ विमान । फिरती राजकुमारियां, एक बाग मे आन ||