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रामायण
जब पड़ी नजर दशकंधर की, विमान उधर को झोक दिया। फिर उतर पास दो नैन मिला, कर प्रेम भाव सब पूछ लिया । गिरि मेघरथ भूपालों की, पुत्री सभी कहाती थीं। और भ्रमण करन को सभी सहेली इसी बाग में आती थीं।
दोहा काम वाण जब लगत हैं, सुध बुध दे विसराय ।
इज्जत डाले धूल में, यह है बाम स्वभाव ॥ यह मात पिता का सभी प्रेम, शीशे की लीक बना डारे । और शर्म धर्म को फेंक कूप मे, चित्त आवे सो कर डारे॥ आपस में सहमत होकर, सबने वहां गन्धर्व विवाह किया। फिर बैठ विमान में जल्दी से, विमान का चक्कर घुमा दिया ॥
दोहा पद्मावती के पिता को, लगी खबर जब जाय । क्रोधातुर राजा हुवा, दल बदल दिया चढाय ॥
दोहा यह दृश्य भयानक देख महा, पद्मावती मन में घबराई ।
तब रत्न सवा सुत ने सन्मुख, हो अपनी शक्ति बतलाई॥ बिगुल बजा जब संग्रामी, तब शूरवीर ने गर्ज किया। शत्रु के दल में भगी पड़ी, नप नाग फांस में जकड़ लिया ॥
दोहा पद्मावती के कथन से, सुर सुन्दर दिया छोड़।
आपस में शुभ मेल कर, लिया सम्बन्ध सब जोड़ ॥ महोदय नृप था कुम्भ पुराधिप, रानी शुभ नैना वरणी । थी विद्युत माला पुत्री, जो कुम्भकरण को है परणी ॥