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रामायण
किन्तु जो भी कुछ कहना है, सो तो कुछ कह ही देते है ।
और शक्ति के अनुसार बात, स्वीकार भी हम कर लेते है ॥ यह सर्व कार्य करने मे, केवल दो दिन स्वतन्त्र हूं। घर गया तो मात-पिता जानें, क्योकि मैं फिर परतन्त्र हूं। वचन वद्ध हो चुका मुझे जल्दी उत्तर मिलना चाहिये। क्योंकि अब मैंने जाना है, और आप भी निज मार्ग जाइये ।।
दोहा ( पद्मा ) प्रथम कहा जो आपने, हमें वही स्वीकार । मीन मेष आदि कोई, होगा नही विचार ।। पहर एक. बस और आपको, यहां बैठे रहना चाहिये । अरु लिये हमारे अनुग्रह कर, यह कष्ट उठा लेना चाहिये। आज्ञा मुझको देवे अब, कार्य सफल बनाने की। सब मात-पिता से कहूँ बात, व्यावहारिक ढंग रचाने की।
दोहा आज्ञा ले कैकसी गई मात-पिता के पास । जो-जो इसको इष्ट था, कहा सभी कुछ भाष !! कुछ पूर्वले संयोग, ज्योतिषी ने कुछ दृढ़ बनाया था। कुछ कैकसी से अनुराग मात क्या व्योम बिन्दु हर्षाया था। उसी समय सहर्ष कुमर को, राज महल ले आये हैं।
और अति उत्सव से उसी रात को, पाणि ग्रहण कराये हैं। दिल खोल के राजकुमारी का, अति धूमधाम से विवाह किया। अपना जामात बना करके, फिर यथा योग्य धन माल दिया। कुसुमोत्तर नगर बसाके नया, अब खुशी से वहां पर रहन लगे। पुण्य रति अब चढ़ती है, अपने मुख से यो कहन लगे।