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रामायण
दोहा
कैसे यहाँ पर आगमन, कौन कहाँ पर धाम । रूपराशि गुण आगरी, क्या है तेरा नाम ॥ क्या है तेरा नाम भूप, किसकी हो राजदुलारी। कारण क्या वन मे आने का कहो सत्य सुकुमारी ॥ साथ रहित है आप, या कोई आते और पिछाड़ी ॥ सेवा हो मेरे लायक कुछ, सो भी कहो उचारी ॥ दोहा
सिद्ध सभी मेरा हुआ, आई थी जिस काम | कृपा और इतनी करें, बता दीजिये नाम | रत्न श्रवा मम नाम है, पिता सुमाली भूप । विद्या साधन के लिए, सही वनों की धूप ॥ सही वनो की धूप, कार्य सिद्ध हुआ मम सारा है । चलने को तैयार शेष, यहाँ काम ना और हमारा है || जल्द उचारण करो मेरे लायक जो काम तुम्हारा है । श्रती नजर कुमारी हो ऐसा अनुमान हमारा है ॥ दौड़
काम मेरे लायक हो, आप को सुख दायक हो । किन्तु अनुचित ना कहना, एकान्त अन्य कुमारी के संग कर्म ना मेरा रहना ॥
दोहा अन्य नहीं समझे मुझे तुम निश्चय मम कंत | चरण चंचरी बन चुकी हूं आयु पर्यन्त ॥ मंगल पुरवर नगर व्योम, विन्दु की राज दुलारी हॅू। आशा एक आप की पर ही, अब तक रही कुंवारी हूँ ||
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