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रामायण
नृप
गिरिधाम ॥
अन्य नगर आदित्य पुरनाम मन्दिर भाली तिसके सुता वनमाला नाम । चौंसठ कला सुगुण अभिराम ॥
दोहा
स्वयम्वर एक मण्डप रचा, मन्दिर माली भूप । सुता विवाहने के लिए, रचना करी अनूप ॥
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लिए भूप बुलवाय उपस्थित हुए स्वयम्वर घर में । भूषित हो वनमाला आई, वर माला ले कर में ॥ दासी चेटी संग सहेली, शोभा लाल अधर मे । देख रूप विस्मित सब ही, जैसे दामिनी अम्बर में ॥
दौड़
अतिक्रम सब का करके, चित किष्किन्धा धरके । गले वरमाला डाली, तब विजयसिंह ने क्रोधातुर हो म्यान से तेग निकाली ॥
दोहा
दगेबाज कुल मे हुवा, दगेबाज ही साथ । शक्ति न अब तेरी चले, देख हमारे हाथ ॥ देख हमारे हाथ यदि तू शूरवीर योद्धा है । बदला सब लेने का मुझको, मिला आन मौका है ॥ पहुँचा दूंगा पर भव में । क्या इधर उधर जोहता है । यह वरमाला रखो यहां, कहूं साफ नहीं धोखा है ॥
दौड़
चूक लड़की ने खाई, चोर गल माला पाई ।
न्याय तलवार करेगी, शक्ति ही दुनिया में वरमाला को आज वरेगी ॥