________________
४४
रामायण
नेत्र करके लाल भूप ने, फौजी बिगुल बजाई । वनमाला भी उसी समय, झट किष्किन्धा पहुँचाई ।। लगा धोर संग्राम होन अति, शूरवीर बलदाई। नभ में लड़े विमान महा, घन घोर घटा सब छाई ।।
दौड लड़े दिल खुशी अपारा, शूरमा योद्धा भारा। किष्किन्धी नप के भाई, क्रोधातुर हो विजयसिंह के हृदय सांग चलाई ॥
दोहा बिजयसिंह धरती गिरा, देखा तुरत नरेश ।
हग मशाल तुल्य करे, दिल मे रोष विशेष ॥ अश्वनी वेग ने क्रोधातुर हो, बाण बैच कर मारा । लगा उरस्थल अन्धक के, परभव को किया किनारा ।। आकाश धरन पर चले, सरासर मानो रक्त फवारा । अग्नि बाण और नाग फांस तम, धुन्द बाण विस्तारा ।।
दोनों ओर शूरमे, हुए खाख धूल में । लंक किष्किन्धाराई, पराजय होकर दौड़ भाग दोनों ने जान बचाई ॥
दोहा अश्वनी वेग ने अरि पर, दल बल दिया चढ़ाय । किष्किन्धा और लंक पर, लिया अधिकार जमाय ॥ निरघातज योधा बुलवाया, राजस्थान पर उसे बैठाया।। देश नगर पुर पाटन सारे, यथा योग्य दिए प्रेम अपारे ।