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रावण - वंश
चौपाई
भूप सुमाली पाले लंका, रत्नश्रवा योधा सुत वंका || साधे विद्यावन खण्ड जाई, शक्ति हो फिर करे चढ़ाई ||
दोहा
जय विद्या साधन लिए, पुष्पोद्याने जाय ।
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, लगीं वहां पर साधने, निश्चल ध्यान लगाय ॥
निश्चल ध्यान लगाय उधर हुवा, हेतु अद्भुत भारी । कौतुकमंगल व्योमविन्दु, नृप जिसके दो सुकुमारी ॥ कौशिका विवाही वैस्रवा को पूर्व जात दुलारी । कैकसी पूछा वर अपना, तब ज्योतिपी कहे उचारी ॥
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दौड़
महाकुसुमोद्यान मे, कुमर एक बैठा ध्यान मे । पति होगा वह तेरा, यदि लगाई देर फेर मे फेर दोष नही मेरा ॥
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दोहा
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इतना सुन कैकसी ने कहा मात को श्रान । समझाकर आज्ञा लई, पहुॅची बैठ विमान ।। इधर उधर को भ्रमण कर, देखा एक स्थान । नल कुबेर सम शूरमा, बैठा लाकर ध्यान ॥ जब पुण्य रूप तन को देखा, तो प्रसन्नता का पार नही देख देख मन भरा किन्तु, अभी आंखें हुई दो चार नहीं ॥ क्या सांचे में ढला जिस्म, इन्द्र भी देख शर्माता है । तब ही यह जन्म सफल जानू, हो इससे मेरा नाता है ॥
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