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बालि-वंश
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लंका किया सुकाम, बहनोई को निज बात सुनाई। , प्पड़ा कष्ट मुझ पर आकर, अव कीजे आप सहाई॥ इतनी शक्ति कहां मुझमे, जो नृप से करू लड़ाई। उभय पक्ष की लंक सति ने, शुभ सम्मति कराई।
पक्ष के होय अधीना, विवाह पुत्री का कीन्हा । किन्तु मन मे दुख पाया, और लाठी जिसकी भैंस समझ अपना जामात बनाया ।।
दोहा लॅकपति कहने लगा, सुन श्रीकंठ सुजान । बास यहां पर ही करो, जाना ठीक न जान ।। जाना ठीक ना जान, वहां पर शत्रु रहते भारी। यह शतरंज का खेल, चूक जाते है बड़े खिलाड़ी। चच्चा तू नादान अभी, कच्ची है उमर तुम्हारी ।। शत्रु नीति निपुण तेरी, मिलकर सब करें ख्यारी ।।
हृदय विश्वास ना धरना, ध्यान गौरव का करना। मुझे है प्रेम तुम्हारा, हितकारी शिक्षा उर धारो मानो वचन हमारा ।।
दोहा वानर द्वीप सुहावना, योजन शत तीन प्रमाण । राज वहां पर कीजिये, वर्तावो निज पान ।
चौपाई भगिनी पति । कहना माना । किष्किंधा शुभे नगर बसाना ।। निर्मल स्थान अति सुखदाई । महल कोट छवि वरनी ना जाई ?