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रामायण
LAVRANAMAVANAMANAVARA
' दौड़ आज अवसर यह पाया, पुण्य सब मेल मिलाया । चलू अब देरी क्या है, पहुँचू निज स्थान बजेगी रण भेरी 'तो क्या है।
दोहा । लात धम्मुके जो सहे, सो पावे जागीर । कायर कर सकते ना कुछ, क्षण में होय अधीर ।। दाबी कला विमान की. सहसा गये आकाश । तिरछी कला मरोड़ के, आये निज आवास ।।
- दोहा पुष्पोत्तर को जब हुआ, सुता हरण का ज्ञान ।
आज्ञा पाते ही सजे, जंगी महा विमान ॥ जंगी महा विमान व्योम मे बादल से छाये हैं। गिरफ्तार वहां शंका मे हुये, नौकर घबराये है। गुप्तचरों से भेद सभी पा, इष्ट दिशा धाये है । श्रीकंठ था सावधान, यहां भेद सभी पाये है।
तजी रियासत सुखदानी, चली संग पद्मा रानी। शरण कोई सोच रहा है, कौन बचावे आज हमें बस ये ही खोज रहा है।
दोहा
क्रोधातुर लख भूप को, श्रीकंठ सोचता धाम । शरणा दिल में धार के, लंका किया मुकाम ।।