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रामायण
बाग बगीचे नदी तालाब । भ्रमण करे मन अति सुख पाव ॥ धर्म कर्म करते सुख पाते । सबके अधिपति अधिक सुहाते ॥ देव गुरु और धर्म से प्यार । सम्यक् धार मिश्यात्व निवार ।
दौड़ वानर द्वीप वानर अति, देखे जब भूपाल । खुशी हुआ मारो मति, मत फेंको कोई जाल ।। अपनी जैसी जान है, सबके अन्दर जान । भोजन पान भंडार से, देवो खुल्ला दान । देवो खुला दान, सब जगह वानर चिह्न कराये । इस कारण वहां के वासिन्दे, वानर नाम कहाये ।। थे नीति में निपुण, और विद्याधर अधिक सुहाये । जंगी चोला शूरवीर, कानों मे कुण्डल पाये ।।
दौड़ नृप घर पद्मारानी, पुत्र हुआ अति सुखदानी । दान दुखियो को दीना, वनसुकंठ दिया नाम रातदिन रहे सुखों मे लीना ॥
दोहा सिहासन पर एक दिन, बैठा भूपति आन। ऊपर को दृष्टि गई, देखा देव विमान । अष्ट नदीश्वर द्वीपसुर, महिमा करते जाय। पीछे ही भूपाल ने, दिया विमान चलाय ।।
चौपाई चलत चलत पर्वत पर आया,अटका विमान न चले चलाया। चारों ओर फिर ध्यान लगाया,साधु देख चरण चिच लाया ।।