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रामायण
यदि मेल कोई मिल जावे तो, गौरव सुख का पार नहीं । उस कुल मे रत्न अपूर्व हो, कोई कर्म को मेटन हार नहीं । यदि इसमे कुछ कसर रहे, तो ज्योतिष विद्या तर्क करू। और प्रतिज्ञा करता हूँ, जो कहो खुशी से दण्ड भरू॥
दोहा उसी समय मैने लई, निज प्रतिज्ञा धार । यदि मिला सयोग तो, वही मेरा भरतार ।।
करते है शादी करने को।
यदि नहीं माने तो मैं तैयार थी बैठी मरने को ॥ विरोध परस्पर है जिनमे, व्यवहार नहीं है सधने का । आगे पीछे नजर आ रहा, झगड़ा एक दिन बढ़ने का ॥
दोहा कर्म प्रकृति जीव का, झगड़ा ही संसार । भाव निवृति कठिन है, भाष गये अवतार ।।
दोहा पद्मा ने ऐसा लखा, श्रीकंठ का प्रेम ।। और विशेष पिघल गई, ग्रीष्म मे जिम हेम ।।
गाना नं. ७ । (तर्ज-पाप का परिणाम ।) संयोग पूर्व जन्म का बेशक नजर आता मुझे,
इस सिवा नही रास्ता कोई नजर आता मुझे ॥१॥ कौन से जादू से मेरे दिल को बेहवल कर दिया। .. खाना पीना पहनना कुछ भी नही भाता मुझे ॥२॥ कर्म है भोगावली संसार मे आता नजर,
क्या कहूं जाऊं किधर अन्तक नहीं खाता मुझे ॥३॥