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बालि-वंश
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सिक्के से मेल मिला करके, सोना निज गौरव खोता है। उस बीज का नाश निशक बने, जो कि कल्लर में बोता है । बिन सोचे जो कोई काम करे, सो ही पीछे फिर रोता है । जो द्रव्य काल अनुसार चले, सो ही जन विजयी होता है ।। आशा निश्चय पूरण होगी, अनुमान नजर यह आते है । पर उद्यम सब का मूल यही, सर्वज देव बतलाते है॥ यह बात सोचने वाली है, स्वार्थ ना कोई निकल आवे । सब रंग भंग हो जाय यदि, कोई समस्या निकल विकट आवे ॥ जो भी कुछ करना बुद्धिमान को, प्रथम सोच लेना चाहिये। आ स्वार्थ के अकुरो को, हृदय से नोच देना चाहिये ॥
दोहा सज्जन ऐसे चाहिये, जैसे रेशम तन्द । धागा धागा खंड हो, कभी न छोड़े बंध ।। ऐसे सज्जन परिहारो, जैसे अर्कज फूल ।
ऊपर लाली चमकती, अन्दर विष का मूल ॥ नीति और व्यवहार की दृष्टि, से कुछ लिखना पड़ता है। पर प्रेम संस्कारी सबको तज, निश्चय आन जकडता है ।। किन्तु फिर भी व्यवहार मुख्य, लिये सब के खास जरूरी है। खाली निञ्चय पर तुल जाना, यह भी तो एक गरूरी है । व्यवहार यदि दुनिया का साधा, जावे तो क्या हानि है। क्यो कि फिर मात पिता की भी, इच्छा होवे मन मानी है ।। इस तरह परस्पर दोनो की, व्यवहारिक शादी हो जाये । प्रतिकूल मे ऐसा संशय है, कोई जान मान ना खो जाये। बस इत्यलं कर के प्रतिज्ञा, एक आप के दर्शन की। यह ख्याल ना करना इच्छा है, पद्मा को उत्तर प्रश्न की।