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रामायण
दोहा ऐसा लिखकर लेख बस, किया बन्ध तत्काल । 'धमकल' को बुलवा लिया, समझाने को हाल ॥ धमकल पहिरेदार शीघ्र, पद्मा के पास सिधाया है।
और विनय सहित अपना मस्तक, भूमि पर आन निमाया है। कुछ बनावटी मुख मंडल, पद्मा ने भी मुआया है। सब बात पूछने के कारण, यो मुख से वचन सुनाया है।
दोहा क्या कोई आया यहां, सच सच कहो वयान ।
झूठ न कहना तनिक भी. समझ मुझे अनजान ॥ सत्य कहने वाले की परीक्षा, सत्य के ही आधार पे है।
और मृपा भापण वाले के लिये, दण्ड भी इस संसार पै है ।। कोई आता-जाता जैसा भी, देखा हो वैसा बतलाओ। यह सत्य सभी को अच्छा है, तुम भय ना कोई मन में खावो ।
दोहा जी हां आया था यहां, मनुष्य अपरिचित आज। व्यंजन लक्षणों का जिसे, मिला सभी शुभ साज॥ सुन्दर सभी अवयव और तन था, सांचे में ढला हुआ। मालूम मुझे होता था, जैसे राज भवन मे पला हुआ। रसना में जिसके आकर्षण, शक्ति थी मानो भरी हुई।
और क्रोध लोभ मद माया की, थी शक्ति सारी जरी हुई। परिचित नहीं होने से भी वह, परिचित से ही बन जाते है। अवकाश मिले नहीं पूछन का, बस प्रेम बीच सन जाते हैं । आते ही प्रसन्न बदन होकर, मुझको पागल सा कर डाला। देखन में सौम्य मूर्ति उन्नत, मस्तक तनु कमर वाला ॥