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शिष्य-प्रश्न
चौपाई मुनि सुत्रत जिन. बीसवे स्वामी, लोका लोक के अतरयामी। नमस्कार कर कलम चलाई, निर्विघ्न ग्रन्थ होवे सुखदायी ॥ अष्टम वासुदेव बलदेव, दिन, दिन बढ़ता अधिक स्नेह ।
दोहा पुरी अयोध्या मे हुए, दशरथ भूप उदार ।
सूर्य वंश मे आ लिया, राम लखन अवतार ।। रामचन्द्र लक्ष्मण सीता, रावण का हाल बताना है। थे योद्धा वलवान बड़े, शक्ति का नही ठिकाना है ।। वानर वंशी सुग्रीवादिक, का भी सब हाल सुनाना है। थे आधीन सब रावण के, पर सत्य पक्ष को जाना है ।।
दौड तीन खंड के मांही, फैली हुई थी प्रभुताई।। अन्त क्या रहा हाथ मे, अच्छे बुरे जो किये कर्म ॥ वो ही ले गये साथ मे ॥
दोहा अष्टम त्रक का हाल अब, सुनो लगाकर कान ।
मुनि सुव्रत अरिहन्त का, शासन था विद्यमान ।। बीसवे तीर्थकर के बाद । पैदा का हाल इन्हो का है। आदि अन्त तक जो चरित्र । बतलाना सभी जिन्हो का है। घबरावे नहीं आपत्ति से । हो नाम प्रसिद्ध उन्हो का है। पर कारण सहे कष्ट मिला नहीं सुख कोई स्वल्प, दिनो का है।