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रामायण
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चौपाई जम्बू द्वीप छोटा सब मांही । भरत क्षेत्र स्थानक सुखदायी। चौथा श्रारा लम्बी आयु । उसका किंचित हाल सुनाऊं।
दोहा आप्त प्रणीत शास्त्रो से, गिनती का शुम्मार ।
सख्या पल सागर, सभी लेवो गुरू से धार ।। बीस कोड़ा क्रोड़ सागर का, शुभ काल चक्र एक होता है। जिसके आधे छः हिस्सो मे, यह समय नाम शुभ चौथा है। बैतालीस सहस्त्र कम एक क्रोड़ा क्रोड़ का यह आरा होता है। हो सर्वज्ञ जीव करनी कर, कर्म मैल को धोता है।
बड़ा होता सुखदाई, नही किसी को दुखदाई । भेद इतना होता है वैसा ही फल मिले जीव को ।। जैसा कोई बोता है ।।
दोहा यथा काल के क्रम से होते है अवतार ।
त्रिपष्ठि के पुरुष सब, पाते भव दधि पार ॥ तीर्थकर चौबीस चक्रवर्ती, बारा ही पहचानो। नौ बलदेव नौ वासुदेव, नौ नौ प्रति नारद जानो। लब्धि धारक मलपर्यव ज्ञानी, और केवल ज्ञानी मानो। विद्याधर सुविशाल शूरमा, बहन कला सुविधानो ।
दौड़ चौवीस धर्म देव हैं, बाकी कर्म देव हैं। नहीं कुछ पुण्य मे खामी, आठो कम संहार सभी । होते हैं मोक्ष के गामी ॥