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॥ श्री वीतरागाय नमः ।। ॥ ॐ असिआउसाय नमः ॥ ॥ परमेष्टिभ्यो नमः ।। म अथ रामायणाम् ।।
शिष्य-प्रश्न .
दोहा जिन वाणी नित दाहिने, अरिहन्त सिद्ध जगदीश । परमेष्ठी रक्षा करे, त्रिपद धार मुनीश ।। १ ।। श्री जिनवाणी शारदा, नमूप्रथमहिय ध्याय । मनो कामना सिद्ध हो, विघ्न समूह नस जाय ॥ २ ॥ विघ्न समूह नस जाय, ध्यान धरते ही जगदम्बा का। केवल है आधार श्री, त्रिशला दे सुत नन्दा का ॥ स्वपुरुषार्थ कहा शस्त्र, छेदना कर्म फन्दा का । सम्यक ज्ञान निमित्त, राह दर्शक होता अन्धा का ।
दौड़ गुरु चरणन सिर नाके, सिद्ध ईश्वर को ध्याके । बात कुछ कहूँ पुरानी, क्या गौरव था भारत का अब कथा सुनो सुखदानी ॥
दोहा
प्रथम शिष्य प्रभु वीर के, इन्द्र भूति शुभ नाम । पाठी चौदह पूर्व के, आत्म गुणो के धाम ।।