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प्रस्तावना
[ ३१ घनमूल- जिस राशिके गुणाकारसे घनराशि उत्पन्न हुई है, उसकी मूलराशि । जैसे
६४ का घनमूल ४ है। सातिरेक- विवक्षित राशिसे कुछ अधिक, इसेही साधिक कहते हैं। विशेषाधिक- विवक्षित राशिके दूने परिमाणसे नीचेतक की सर्व राशियां । संख्यातगुणित - दूनी राशि और उससे ऊपर तिगुनी, चौगुनी आदि वे सब राशियां जो
संख्यातके अन्तर्गत होती है। असंख्यातगुणित- यथासंभव मध्यम असंख्यातसे गुणित राशि लेना । अनन्तगुणित--- यथासंभव मध्यम अनन्तसे गुणित राशि । द्वितीय वर्गमूल- विवक्षित राशिका दूसरा वर्गमूल । जैसे- १६ का प्रथम वर्गमूल ४ है
और दूसरा वर्गमूल २ है। इसी प्रकार तृतीय, चतुर्थ आदि वर्गमूलोंको समझन ।
चाहिए। भागहार- जिस राशिसे विवक्षित राशिमें भाग दिया जावे । अवहारकाल- भागहाररूप कालात्मकराशि ।
द्रव्यप्रमाणानुगममें मार्गणाओंके भीतर जीवोंकी जो संख्या बतलाई गई है, उसके अनुसार अनन्त, असंख्यात और संख्यात राशिवाले जीवोंका अल्पबहुत्व इस प्रकार जानना चाहिए
अनन्त राशिवाले जीव- १ अभव्य, २ सिद्ध, ३ मान कषायी, ४ क्रोध कषायी, ५ माया कषायी, ६ लोभ कषायी, ७ कापोत लेश्यावाले, ८ नील लेश्यावाले, ९ कृष्ण लेश्यावाले, १० अनाहारक, ११ आहारक, १२ भव्य, १३ वनस्पति कायिक, १४ एकेन्द्रिय, १५ काययोगी, १६ असंज्ञी, १७ तिर्यंच, १८ नपुंसकवेदी, १९ मिथ्यादृष्टि, २० कुमति ज्ञानी, २१ कुश्रुतज्ञानी, २२ अचक्षुदर्शनी, २३ असंयमी।
___ असंख्यात राशिवाले जीव- १ देशसंयत, २ सासादन सम्यग्दृष्टि, ३ सम्यग्मिथ्यादृष्टि, ४ औपशमिक सम्यक्त्वी, ५ क्षायिक सम्यक्त्वी, ६ क्षायोपशमिक सम्यक्त्वी, ७ शुक्ललेश्यिक, ८ अवधि दर्शनी, ९ अवधिज्ञानी, १० मतिज्ञानी, ११ श्रुतज्ञानी, १२ पझलेश्यिक, १३ पीतलेश्यिक, १४ मनुष्य, १५ पुंवेदी, १६ नारकी, १७ स्त्रीवेदी, १८ देव, १९ विभंग ज्ञानी, २० मनोयोगी, २१ संज्ञी, २२ पंचेन्द्रिय, २३ चक्षुदर्शनी, २४ चतुरिन्द्रिय, २५ त्रीन्द्रिय, २६ द्वीन्द्रिय, २७ वचनयोगी, २८ त्रसजीव, २९ तेजस्कायिक, ३० पृथ्वीकायिक, ३१ जलकायिक, ३२ वायु कायिक ।
संख्यात राशिवाले जीव- १ सूक्ष्मसाम्परायसंयमी, २ मनःपर्ययज्ञानी, ३ परिहारसंयमी ४ केवलज्ञानी, ५ केवलदर्शनी, ६ यथाख्यातसंयमी, ७ सामायिकसंयमी, ८ छेदोपस्थापनासंयमी।
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