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श्री विपाक सूत्र -
[ प्रथम अध्याय
"पासित्ता हट्ठ० जाव क्यासी” इस पाठ में उल्लेख किय गये " जाव- यावत्" पद में भगवती - सूत्रीय १५ वें शतक के निम्नलिखित पाट के ग्रहण करने की ओर संकेत किया गया है
.तट्ठचित्तमादिया, पीइमणा, परमसोमण स्सिया, हरिसवसविसप्पमाण हियया विपामेव सा श्रब्भुट्टे गोयमं अणगारं सत्तनयाई श्रणुगच्छइ २ तिक्खुतो याहिणं पयाहिणं करेति करिता वंदिना णमंसिना...... ।
सारांश यह है कि महाराणी मृगावती अपने घर की ओर आते हुए भगवान् गौतम स्वामी को देख अधिक हर्षित हुई, तथा प्रसन्न चित्त से शीघ्र ही श्रासन पर से उठ कर सात आठ कदम श्रागे गई, और उनको दाहिनी तर्फ से तोन वार प्रदक्षिणा दे कर वन्दना तथा नमस्कार करती है, वन्दना नमस्कार करने के अनन्तर विनयपूर्वक उन से पूछती है कि भगवन् ! फर्माइये आप ने किस निमित्त से यहां पर पधारने की कृपा की है ? ।
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महाराणी मृगादेवी का गौतम स्वामी के प्रति आगमन - प्रयोजन - विषयक प्रश्न नितरां समुचित एवं बुद्धिगम्य है, कारण कि आगमन विषयक अवगति-ज्ञान होने के अनन्तर ही वह उन की इच्छित वस्तु देने में समर्थ हो सकेगो तथा उपकरण आदिक वस्तु का दान भी प्रयोजन के अन्तगंत ही होता है, इसलिये महाराणी मृगादेवी की पृच्छा को किसी प्रकार से अंसघटित नहीं माना जा सकता, प्रत्युत वह युक्तियुक्त एवं स्वाभाविक है।
प्रयोजन- विषयक प्रश्न के उत्तर में गौतम स्वामी ने अपने आगमन का प्रयोजन बतलाते हुए कहा कि- देवि! मैं केवल तुम्हारे पुत्र को देखने के लिये यहां आया हूँ । यह सुन मृगादेवी ने अपने चारों पुत्रों को जो कि मृगापुत्र के पश्चात् जन्मे हुए थे - वस्त्र भूषणादि से अलंकृत कर के गौतम स्वामी की सेवा में उपस्थि हुए कहा कि भगवन् ! ये मेरे पुत्र हैं, इन्हें आप देख लीजिये मृगादेवी के सुन्दर और समलंकृत उन चारों पुत्रों को अपने चरणों में झुके हुए देखकर गौतम स्वामी बोले- महाभागे ! मैं तुम्हारे इन पुत्रों को देखने की इच्छा से यहां पर नहीं आया, किन्तु तुम्हारे मृगापुत्र नाम के ज्येष्ठ पुत्र जो कि जन्मकाल से ही अन्धा तथा पंगुला है और जिस को तुमने एक गुप्त भूमिगृह में रक्खा हुआ है तथा जिस का गुप्तरूप से तुम पालन पोषण कर रही हो–को देखने के लिये मैं यहां आया हूँ । गोतम स्वामी की इस अश्रुतपूर्व विस्मयजनक वाणी सुनकर मृगादेवी एकदम अवाक् सी रह गई ! उस ने आश्चर्यान्वित होकर गौतम स्वामी से कहा कि भगवन् ! इस गुप्त रहस्य का श्राप को कैसे पता चला ? वह ऐसा कोन सा अतिशय ज्ञानी या तपस्वी है जिस ने आप के सामने इस गुप्तरहस्य का उद्घाटन किया ? इस वृत्तान्त को तो मेरे सिवा दूसरा कोई नहीं जानता, परन्तु आपने उसे कैसे जाना १ मृगादेवी का गौतम स्वामी के कथन से विस्मित एवं आश्चर्यान्वित होना कोई अस्वाभाविक नहीं ? यदि कोई व्यक्ति अपने किसी अन्तरंग वृत्तान्त को सर्वथा गुप्त रखना चाहता हो, और वह अधिक समय तक गुप्त भी रहा हो, एवं उसे सर्वथा गुप्त रखने का वह भरसक प्रयत्न भी कर रहा हो, ऐसी अवस्था
कस्मात् ही कोई अपरिचित व्यक्ति उस रहस्यमयी गुप्त घटना को यथावत् रूपेण प्रकाश में ले आवे तो सुनने वाले को अवश्य ही आश्चर्य होगा ? वह सहसा चौंक उठेगा, बस वही दशा उस समय मृगादेवी की हुई ! वह एकदम सम्भ्रान्त और चकित सी हो गई ? इसी के फलस्वरूप उस ने गौतम स्वामी के विषय में "भन्ते !" की जगह "गातमा !" ऐसा सम्बोधन कर दिया ।
जातिधे जाव अंधारूवे" में पठित " जाव यावत्" पद से "जातिमूप, जातिबहिरे, जातिपंगुले" इत्यादि पूर्व प्रतिपादित पदों का ग्रहण करना, जो कि मृगापुत्र के विशेषण रूप हैं । तथा 'हव्वमागए"
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