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६३८]
श्रीविपाकसूत्रीय द्वितीय श्रुतस्कन्ध
[प्रथम अध्याय
अणगारियं पव्वइत्तए ? हंता पभू । तते णं से भगवं गोयमे समणं भगवं वंदति नमसति वन्दित्ता नमंसित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरति । तते णं से समणे भगवं अन्नया कयाइ हथिसीसाओ गगरायो पुप्फकरंडामओ उज्जाणाओ कतवणमालजक्खायतणाश्रो पडिनिक्खमइ पडिनिमित्ता बहिया जणवयं विहरति । तते णं से सुबाहुकुमारे समाणोवासए जाते अभिगयजावाजीवे जाव पडिलाभेमाणे विहरति । तते णं सुबाहुकुमारे अन्नया चाउद्दसट्टमुद्दिपुराणमासिणीसु जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छह उवागच्छित्ता पोसहसालं पमज्जति पमज्जिचा उच्चारपासवणभूमि पडिलेहेति पडिलेहिचा दब्मसंथारगं संथरेइ दब्मसंथारं दुरूहति । अट्ठममत्तं पगेएहति, पोसहसालाए पोसहिए अट्ठमभत्तिए पोसहं पडिजागरमाणे पडिजागरमाणे विहरति ।
पदार्थ- हे भंते !-हे भदन्त ! । सुबाहुकुमारे-सुबाहुकुमार । देवाणुप्पियाणं -श्रापश्री के । अंतिए-पास । मुण्डे भवित्ता-मुंडित हो कर । अगाराअो-अगार-घर को छोड़ कर । अरणगारियं-अनगारधर्म को। पवइत्तर -प्राप्त करने में । भू-समर्थ है ? । -वाक्यलंकारार्थक है । हंता-हां । पभू-समर्थ है। तते -तदनन्तर । से-वह । भगवं-भगवान् । गोयमे-गौतम । समणं-श्रमण भगवं-भगवान् महावीर स्वामी को। वंदति-वन्दना करते हैं । नमसति-नमस्कार करते हैं । वंदिता नमंसित्ता-वन्दना, नमस्कार कर के। संजमेण-संयम और । तवसा-तप के द्वारा । अप्पा-आत्मा को | भावेमाणे-भावित करते हुए। विहरति-विहरण करने लगे । तते - तदनन्तर । से-वे । समणे-श्रमण । भगवं-भगवान् महावीर स्वामी । अन्नया-अन्यदा। कयाइकिसी समय । हथिसीसाओ-हस्तिशीर्ष । णगरायो - नगर के । पुप्फकरडाओ-पुष्पकरंडक नामक । उज्जाणाओ-उद्यान से । कृतवणमालजक्वायतणाओ-कृतवनमाल नामक यक्षायतन से । पडिनिक्ख. मति पडिनिक्खमित्ता-निकलते हैं, निकल कर । बहिया-बाहिर । जणवयं-जनपद - देश में । विहरतिविहरण करने लगे । तते -तदनन्तर । से-वह । सुबाहुकुमारे-सुबाहुकुमार ।समणोवासए -श्रमणोपासक-श्रावक-जैनगृहस्थ । जाते-हो गया । अभिगयजीवाजीवे-जीव और अजीव आदि तत्त्वों का मर्मज्ञ । जाव-यावत् । पडिलामेमाणे -अाहारादि के दानजन्य लाभ को प्राप्त करता हुआ । विहरतिविहरण करने लगा । तते -तदनन्तर । से -वह । सुबाहुकुमारे-सवाहुकुमार । अन्नया-अन्यदा । चाउद्दसहमुहिष्टपुरणमासिणीसु-चतुर्दशी, अष्टमी, उद्दिष्ट -अमावस्या और पूर्णमासी इन तिथियों में से किसी एक तिथि के दिन । जेणेव-जहां । पोसहसाला-पोषवाला -पौषधवा करने का स्थान था। तेणेव-वहां । उवागच्छति उवागच्छित्ता-आता है, अाकर । पोसहसालं-पौषधशाला का । पमज्जति पमज्जित्ता - प्रमार्जन करता है, प्रमार्जन कर । उच्चारपासवणभूमि - उच्चारप्रस्रवणभूमि - मलमूत्र के स्थान की। पडिलेहेति-प्रतिलेखना करता है, निरीक्षण करता है, देखभाल करता है । दब्भसंथारं-दर्भसंस्तारकुशा का संस्तार-आसन । संथारेइ-बिछाता है । दब्भसंथारं -दर्भ के आसन पर । दुरूहात-बारूढ़ होता है। अट्टममतं अष्टमभक्त -तीन दिन का अविरत उपवास । पगएहति-ग्रहण करता है। पोसहसालाए- पौषधशाला में । पोसहिए-पौषधिक पौषधव्रत धारण किए हुए वह । अट्ठमभत्तिरअष्टमभक्तिक -अष्टमभक्कसहित । पोसह-पौषध - अष्टमी, चतुर्दशी श्रादि पर्वतिथि में करने योग्य जैन श्रावक का व्रतविशेष, अथवा आहारादि के त्यागपूर्वक किया जाने वाला धार्मिक अनुष्ठान विशेष का । पडिजागरमाणे पडिजागरमाणे-पालन करता हुआ,२। विहरति-विहरण करने लगा ।
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