Book Title: Vipak Sutram
Author(s): Gyanmuni, Hemchandra Maharaj
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

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Page 771
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org द्वितीय अध्याय ] हिन्दी भाषा टीका सहित । परिणिव्वाहिति सव्वदुक्खाणमंतं करेहिति । निक्खेवो । ॥ वितियं यणं समत्तं ॥ 1 पदार्थ - वितिय द्वितीय अध्ययन का । उक्खेवो - उत्क्षप - प्रस्तावना पूर्ववत् जानन चाहिये | एवं - इस प्रकार । खजु - निश्चय ही जंबू ! - हे जम्बू ! | तेणं - उस । काले- - काल में । तेणं समएणं - उस समय में। उसमपुरे ऋषभपुर नामक | गरे-न - नगर था । धूमकरं डयं स्तूपकरंडक । उज्जाणं - उद्यान था । धन्ते धन्य नामक । जक्खो-यक्ष था । धणावहो—धनावह। रायाराजा था। सरस्वती देवी सरस्वती देवी थी । सुमिसणं स्वप्न का देखना । कहणं - कथन-पति कहना | जम्मं बालक का जन्म । बालत्तणं - बाल्यावस्था । कला श्री य - कलाओं का सीखना । जो— यौवन को प्राप्त करना । पाणिग्गद्दणं- पाणिग्रहण विवाह का होना। दाश्रो प्रीतिदान-दहेज की प्राप्ति । पालाद० महलों में भोगा य - भोगों का सेवन करने लगा। जहां-जैसे । सुबाहुस्ससुबाहुकुमार का वर्णन है। नवरं - विशेष यह है कि । भद्दनन्दी भद्रनन्दी । कुमारे-कुमार था । सिरीदेवोपामोक खाणं- श्रीदेवीप्रमुख । पंचसयाग पांच सौ रायवरकन्नगाणं - श्रेष्ठ राजकन्याओं के साथ । पाणिग्गहणं -- विवाह हुआ । सामिस्स श्रमण भगवान् महावीर स्वामी का। समोसरणं - समयसरण—पधारना हुआ । सावगधम्मं० - श्रावकधर्म का ग्रहण करना । पुव्वभवपुच्छा - पूर्वभव की पृच्छा । महाविदेहे - महाविदेह क्षेत्र में पुण्डरीगिणी - पुण्डरीकिणी नाम की। णगरी नगरी थी। विजए विजय नामक । कुमारे कुमार था। जुगबाहू - युगबाहु | तित्थंगरे - तीर्थकर । पडिलाभिते प्रतिलामित किये । मगुरुलाउए - मनुष्य आयु का बबन्ध किया । इहं यहां । उववन्ने उत्पन्न हुआ। सेसं - शेष । जहा - -जैसे । सुबाहुस्स - सुबाहुकुमार का वर्णन है । जाव - यावत् । महाविदेहे . महाविदेह क्षेत्र में । सिज्झिहिति- - सिद्ध होगा । बुज्झिहिति- - बुद्ध होगा। मुच्चिहिति - कर्मबन्धनों से मुक्त होगा। परिनिवाहिति - निर्वाण पद को प्राप्त होगा । सव्वदुकखाणमन्तं - सर्व दुःखों का अन्त । करेहिति करेगा । नित्रखेवो - निक्षर की कलना पूर्व की भाँति कर लेनी चाहिये । वितियं - द्वितीय । अज्म अध्ययन समत्त - समाप्त हुआ · r L Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir For Private And Personal [ ६८१ मूलार्थ - द्वितीय अध्ययन के उत्क्षेप - प्रत्तावना की कल्पना पूर्व की भाँति कर लेनी चाहिये । जम्बू ! उस काल तथा उस समय ऋषभपुर नामक नगर था, वहां पर स्तूपकरंडक नामक उद्यान था, वह धन्य नाम के यक्ष का यज्ञायतन था। वहां धनावह नाम का राजा राज्य किया करता था। उसकी सरस्वती देवी नाम की रानी थी । महारानी का स्वप्न देखना और पति से कहना, समय आने पर बालक का जन्म होना, और बालक का बाल्यावस्था में कलाएं सीख कर यौवन को प्राप्त करना, तदनन्तर विवाह का होना, माता पिता द्वारा दहेज का देना, तथा राजभवन में यथारुचि भोगों का उपभोग करना आदि सब कुछ सुबाहुकुमार की भाँति जानना चाहिये । इस में इतना अन्तर अवश्य है कि बालक का नाम भद्रनन्दी था । उसका श्रीदेवीप्रमुख ५०० श्रेष्ठ राजकन्याओं साथ विवाह हुआ | महावीर स्वामी का पधारना, भद्रनन्दी का श्रावकधर्म ग्रहण करना, गौतम स्वामी का पूर्वभवसम्बन्धी प्रश्न करना, तथा भगवान् का कथन करना— महाविदेह क्षेत्र के अन्तर्गत पुण्डरीकिणी नाम की नगरी में विजय नामक कुमार था, उस का युगबाहु तीर्थंकर को प्रतिलाभित करना, उस से मनुष्य आयु का बन्ध करना और यहां पर

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