Book Title: Vipak Sutram
Author(s): Gyanmuni, Hemchandra Maharaj
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 783
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir पश्चम अध्याय हिन्दी भाषा टीका सहित । प्राप्ति लिखा है । उस को हृदयंगम कराने के लिये यह कथासन्दर्भ एक उत्तम शिक्षक का काम देता है। -पडिलाभिते जाव सिद्धे-इस संक्षिप्त पाठ में जाव-यावत् पद से आहार देने से लेकर मोक्ष जाने तक के प्रथम अध्ययन में उल्लेख किये गये समस्त इतिवृत्त को संगृहीत करने की ओर संकेत किया गया है । विशेष बात यह है कि वह उसो भव में मोक्ष गया । इस के अातारक्त अध्ययन की प्रस्तावना में दान धर्म को मोक्ष का सोपान बतलाते हुए जो उस के महत्त्व का वर्णन किया था, प्रस्तुत कथासंदर्भ से उस की सम्यग रूप से उपपत्ति हो जाती है। उत्तेप का अर्थ है - प्रस्तावना । प्रस्तुत में प्रस्तावनारूप सूत्रांश - जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तणं सुहविवागाणं च उत्यस्ल अकय गस्त अयम? परमत्त । पंचमस्स णं भंते ! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तणं के अटे पराणत्त । -अर्थात् श्री जम्बूस्वामी अपने गुरु देव श्री सुधर्मास्वामो से कहने लगे कि यदि भदन्त ! यावत् मोक्षसंप्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने सुखविपाक के चतुर्थ अध्ययन का यह (पूर्वोक्त। अर्थ फ़रमाया है तो भगवन् ! पावत् मोक्षसंप्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने सुखविपाक के पञ्चम अध्ययन का क्या अर्थ फ़रमाया है ?-" इस प्रकार है। निक्षेप का अर्थसम्बन्धी ऊहापोह पृष्ठ १८८ पर किया जा चुका है । निक्षेप शब्द से संसूचित सूत्रपाठ निनोक्त है एवं खलु जम्बू ! समणे भगवया महावीरेणं जाव संपत्तणं सुहविवागाणां पंचमस्स अज्झयणस्स अयम? पणत्ते। त्ति बेमि । अर्थात् सुधर्मा स्वामी कहने लगे कि हे जम्बू ! यावत् मोक्षसम्प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामो ने सुखविपाक के पञ्चम अध्ययन का यह (पूर्वोक्त) अर्थ प्रतिपादन किया है । इस प्रकार मैं कहता हूँ अर्थात् जैसा मैंने भगवान् से सुना है वैसा तुम्हें सुना दिया है । इस में मेरी अपनी कोई कल्पना नहीं है। -पडिलाभिते जाव सिद्धे- यहां पठित जाव-यावत् पद -मेवरथ राजा का संसार को परिमित करने के साथ २ मनुष्यायु को बांधना, मृत्यु के अनन्तर उस का जिनदास के रूप में अवतरित होना, गौतम स्वामी का भगवान महावीर से - जिनदास श्राप श्री के चरणों में दीक्षित होगा या कि नहीं ? - ऐसा पूछना, भगवान् का-हां होगा, ऐसा उत्तर देना तथा विहार कर जाना, जिनदास का तैला पौषध करना, उस में भगवान् के चरणों में साधु बनने का निश्चय करना. तदनन्तर भगवान् महावीर स्वामी का वहां पर पधारना तथा जिनदास का माता पिता से आज्ञा ले कर दीक्षित हो कर आत्मसाधना में संलग्न होना तथा समय आने पर केवलज्ञान को प्राप्त करना, आदि भावों का परिचायक है। सुबाहकुमार और जिनदास के जीवनवृत्तान्त में इतना ही अन्तर है कि श्री सुबाहुकुमार प्रथम देवलोक से व्यत हो कर अनेकों भव करके महाविदेह क्षेत्र में सिद्ध पद प्राप्त करेंगे जब कि जिनदास उसी जन्म में सिद्ध हो गए। ॥ पंचम अध्ययन समाप्त ॥ For Private And Personal

Loading...

Page Navigation
1 ... 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824 825 826 827 828 829