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तृतीय अध्याय
हिन्दी भाषा टीका महित ।
करना और इसी प्रकार आवागमन करते हुए अन्त में महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न हो कर संयम व्रत के सम्यम् अनुष्ठान से कमबन्धनों को तोड कर सिद्ध पद - मोक्षपद को प्राप्त करना, आदि में अक्षरश: समानता है।
-उप्पन्ने जाव सिझिहिति ५--यहां पठित जाव-यावत् पद गौतम स्वामी का वीर प्रभु से - सुजातकुमार श्रापश्री के चरणों में दीक्षित होगा कि नहीं ? - ऐसा प्रश्न पूछना तथा भगवान् महावीर स्वामी का उत्तर देना और अन्त में प्रभु का विहार कर जाना । सुजात कुमार का तेला पौषध करना, उस में साधु होने का विचार करना, भगवान् का वीरपुर नामक नगर में श्राना, सजातकुमार का दीक्षित होना, संबमाराधन से उस का मृत्यु के अनन्तर देवलोक में उत्पन्न होना, वहां से सुबाहुकुमार की भांति अनेकानेक भव करते हुए वह अन्त में महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होगा, आदि भावों का परिचायक है।। तथा ५ के, झक से अभिमत पद श्री सुबाहुकुमार नामक सुखविपाक के प्रथम अध्ययन के पृष्ठ:६७७ पर लिखे जा चुके हैं। पाठक वहीं देख सकते हैं । नामगत भेद के अतिरिक्त अर्थगत कोई अन्तर नहीं है ।
॥ तृतीय अध्ययन सम्पूर्ण ।
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