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प्रथम अध्याय ]
हिन्दी भाषा टीका सहित।
श्री सुबाहुकुमार का जीवनवृत्तान्त साधकों या मुमुक्षु जनों को सर्वथा उपादेय है। शाश्वत सुख के अभिलाषियों के लिये सुप्रसिद्ध राजमार्ग हैं । जो साधक विकास की ओर प्रस्थान करने वाले हैं उन्हें इस के दिव्यालोक में सुख का वास्तविक स्वरूप अवश्य उपलब्ध होगा।
यह आत्मा सुख और आनन्द का अथाह सागर है । ज्ञान की अनन्त राशि है। शक्तियों का अखूट भंडार है । जिस को यह अपना वास्तविक रूप उपलब्ध हो जाता है, उस के लिये फिर कुछ भी अप्राप्य या अनुपलभ्य नहीं रहता। परन्तु इस अवस्था को प्राप्त करने के लिये जिन साधनों को अपनाने की आवश्यकता होती है, वे सब प्रस्तुत अध्ययन के प्रतिपाद्य अर्थ में निर्दिष्ट हैं । जो साधक उन को आदर्श रख कर अपने जीवन पथ को निश्चित करेगा. वह महामहिम श्री सबाहकमार की
र की भांति एक न एक दिन अपने गन्तव्य स्थान को प्राप्त कर लेगा। यह निर्विवाद और निस्सन्देह है।
॥ प्रथम अध्ययन समाप्त॥
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