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६६१]
श्रीविपाकसूत्रीय द्वितीय श्रुतस्कन्ध
[प्रथम अध्याय
उष्णताजन्य संताप को दूर करने का यत्न करने लगो। एक स्त्री झारी लेकर वहां आई वह भी वहां पूर्वदक्षिण दिशा की ओर खड़ी हो गई । ऐसे वैभव से मेघकुमार को उस पालकी में बिठलाया गया । पालकी की तैयारी होने पर महाराज श्रेणिक ने समान रंग, समान आयु और समान वस्त्र वाले एक हजार पुरुषों को बुलाया । अाज्ञा मिलने पर वे पुरुष स्नानादि से निवृत्त हो, वस्त्राभूषण पहिन कर वहां उपस्थित हो गये। महाराज श्रेणिक की ओर से पालकी उठाने की आज्ञा मिलने पर उन्हों ने पालकी को अपने कंधों पर उठा लिया और राजगृह के बाजार की ओर चलने लगे।
एक राजा अपने राज्य को त्याग कर दीक्षा ले रहा है, ऐसी सूचना मिलने पर कौन ऐसा भाग्य हीन श्रादमी होगा जो इस पावन दीक्षामहोत्सव में सम्मिलित न हुआ होगा ? सारे नागरिक दीक्षामहोत्सव को देखने के लिये जलप्रवाह को भाँति उमड़ पड़े। राज्य की समस्त सेना भी उपस्थित हुई । सारांश यह है कि वहां महान् जनसमूह एकत्रित हो गया तथा सब लोग जय जय कार से आकाश को प्रतिध्वनित करते हुए दीक्षायात्रा की शोभा में वृद्धि करने लगे।
मेवकुमार की सहस्रपुरुषवाहिनी पालको बड़े वैभवपूर्ण समारोह के साथ नगर के बीच में से होकर चली। सब के आगे सेना थी और महाराज श्रेणिक भी उसी के साथ थे। सेना के पीछे मंगलद्रव्य थे और उनके पोछे मेत्रकुमार को पालकी थो । पालकी के पीछे जनता थी । इस प्रकार धूमधाम से मेघकुमार की पालकी जहां महामहिम, करुणा के सागर, दीनों के नाथ, पतितपावन, दयानिधि श्रमण भगवान् महावीर स्वामी विराजमान थे उस ओर अर्थात् गुणशिलक उद्यान की ओर चली । वहां उद्यान के समीप पहुँचने पर पालकी नीचे रक्खी गई और मेवकुमार तथा उस की माता आदि सब उस में से उतर पड़े । मेधकुमार को आगे करके महाराज श्रेणिक और महारानी धारिणी जहां पर भगवान् महावीर स्वामी विराजमान थे, वहां पहुँचे । सब ने विधिपूर्वक भगवान् को वन्दन किया। सदनन्तर मेवकुमार की ओर संकेत कर के महारानो धारिणो तथा महाराज श्रेणिक ने बड़े विनम्रभाव से भगवान् को सम्बोधित करते हुए कहा
भगवन् ! हम आप को एक शिष्य की भिक्षा देने लगे हैं, आप इसे स्वीकार करने की कृपा करें। यह मेवकुमार हमारा इकलौता बेटा है । यह हमें प्राणों से भी अधिक प्रिय है, परन्तु इस की भावना आप श्री के चरणों में दीक्षित हो कर प्रात्मकल्याण करने की है । यद्यपि यह राज्यवैभव के अनुपम कामभोगों में पला है तथापि कीच में पेदा हो कर कीच से अलिप्त रहने वाले कमल की भाँति यह कामभोगों में आसक्त नहीं हुआ। जिन दुःखों को इस ने अतीत जन्मों में अनेक बार सहा है, उन से यह विशेष भयभीत है । अनागत में अतीत के समान दुःखों को न पाऊ', इस भावना से यह आपश्री के चरणों में उपस्थित हो रहा है । अतः इस की इस पुनीत भावना को पूर्ण करने की आप इस पर अवश्य कृपा करें। माता पिता के इस निवेदन के अनन्तर भगवान् महावीर स्वामी की ओर से शिष्यभिक्षा को स्वीकृति मिलने पर मेवकुमार भगवान् के पास से उठ कर ईशान कोण में चले जाते हैं, वहां जाकर उन्होंने शरीर पर के सारे बहुमूल्य वस्त्राभूषणों को उतारा और उन्हें माता के सुपुर्द किया । माता धारिणो ने भी उन्हें सुरक्षित रख लिया। तदनन्तर माता और पिता मेघकुमार को सम्बोधित करते हुए बोले
पुत्र ! हमारी आन्तरिक इच्छा न होने पर भी हम विवश हो कर तुम को आज्ञा दे रहे हैं, किन्तु तुम ने इस बात का पूरा २ ध्यान रखना कि जिस कार्य के लिये तुम ने राज्यसिंहासन को ठुकराया
(१) माता धारिणी के एक ही पुत्र होने के कारण मेबकुमार को इकलौता बेटा कहा गया है ।
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