Book Title: Vipak Sutram
Author(s): Gyanmuni, Hemchandra Maharaj
Publisher: Jain Shastramala Karyalay

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Page 740
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir श्रीविपाकसूत्रीय द्वितीय श्रुतस्कन्ध [प्रथम अध्याय जाव वियाणित्ता पुव्वाणुपुब्बिं दहज्जमाणे जेणेव हत्थिसीसे णगरे जेणेव पुष्फकरंडे उज्जाणे जेणेव कयवणमालप्पियस्स जक्खस्स जक्खायतणे तेणेव उवागच्छा उत्रागच्छित्ता अहापडिरूवं उग्गहं उग्गिएहत्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणे विहरति । परिसा राया निग्गते । तते णं तस्स सुबाहुस्स कुमारस्स तं महया० जहा पढमं तहा निग्गयो । धम्मो कहिओ। परिसा राया गतो । तते णं से सुबाहुकुमारे समणस्स भगवश्री महावीरस्स अतिए धम्म सोच्चा निसम्म हहतुढे जहा मेहो तहा अम्मापियरो आपुच्छति । निक्खमणाभिसेस्रो तहेव जाव अणगारे जाते, इरियासमिते जाव बम्भयारी। पदार्थ-तते ण-तदनन्तर । समणे-श्रमण । भगवं-भगवान् । महावीरे-महावीर स्वामी । सुबाहुस्स - सुबाहु । कुमारस्ल-कुमार के । इमं - यह । एयारूवं-इस प्रकार के । अज्झत्यियं ५- संकल्प आदि को । जाव - यावत् । वियाणित्ता- जान कर । पुव्वाणुपुवि-पूर्वानुपूर्वी-क्रमश: । दूइज्जमाणे- भ्रमण करते हुए । जेणेव-जहां । हथिसीसे-हस्तिशीर्ष । णगरे- नगर था। जेणेव-जहां । पुप्फकरण्डेपुष्पकरंडक नामक । उज्जाणे-उद्यान था। जेणेव-जहां पर । कयवणमालप्पियस्स- कृतवनमालप्रिय । जक्खस्त-यक्ष का । जक्खायतणे-यक्षायतन था । तेणेव-वहां पर । उवागच्छति-पधारे । अहापडिहवं -यथाप्रतिरूप । उग्गह-अवग्रह । उग्गिरिहत्ता-ग्रहण कर । संजमेणं- संयम से । तवसा-तप के द्वारा। अप्पाण-आत्मा को। भावेमाणे-भावित-वासित करते हुए । विहरतिविहरण करने लगे। परिसा-परिषद् । राया- राजा। निग्गते- नगर से निकले । तते गं- तदनन्तर । तस्स - उस । सुबाहुस्स-सुबाहु । कुमारस्स-कुमार का तं-वह । महया०-महान् समुदाय के साथ । जहा-जैसे । पढम-पूर्ववर्णित (नगर से निष्क्रमण था) । तहा-वैसे (वह) । निग्गो - निकला । धम्मोधर्म का। कहिश्रो-प्रतिपादन किया। परिसा-परिषद् । राया-राजा । गतो-चला गया । तते एंतदनन्तर । से-वह । सुबाहुकुमारे-सुबाहुकुमार । समणस्स-श्रमण | भगवो महावीरस्स-भगवान् महावीर के अंतिए-पास । धम्म-धर्मकथा को। सोच्चा '-सुन कर । निसम्म-अर्थं से अवधारण कर । हतु -अत्यन्त प्रसन्न हुअा २। जहा-जैसे। मेहो-मेघ-महाराज श्रेणिक के पुत्र मेघकमार । तहाउसी प्रकार । अम्मापियरो-माता पिता को । श्रापुच्छति-पूछता है । निक्खमणाभिसेश्रो-निष्क्रमणाभिषेक । तहेव-तथैव-उसी तरह । जाप-यावत् । अणगारे-अनगार जाते-हो गया । इरियासमितेईर्यासमिति का पालक । जाव-यावत् । बंभयारी-ब्रह्मचारी बन गया। विज्ञाय पूर्वानुपूर्व्या द्रवन् यत्रैव हस्तिशीर्ष नगर, यत्रैव पुष्पकरण्डमुद्यानं यत्रैव कृतवनमालप्रियस्य यक्षस्य यक्षायतनं तत्रैवोपागच्छति उपागत्य यथाप्रतिरूपमवग्रहमवगृह्य संयमेन तपसाऽऽस्मानं भवयन् विहरति । परिषद् राजा निर्गतः । ततस्तस्य सुवाहो: कुमारस्य तद् महता. यथा प्रथमं तथा निर्गतः । धर्मः कथितः । परिषद् राजा गतः। ततः स सुबाहुकुमारः श्रमणस्य भगवतः महावीरस्यांतिके धर्म श्रुत्वा निशम्य हृष्टतुष्टयथा मेघस्तथ अम्बापितरौ आपृच्छति । निष्क्रमणाभिषेकस्तथैव यावद् अनगारो जातः ईर्यासमितो यावद् ब्रह्मचारी। (१) सोच्चा -यह पद मात्र श्रवणपरक है । सुने हुए का मनन करने में “निसम्म" शब्द का प्रयोग होता है । अर्थात् सुना और उसके अनन्तर मनन किया, इन भावों के परिचायक सोच्चा और निसम्म ये दोनों पद है। For Private And Personal

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