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प्रथम अध्यायः]
.हिन्दी भाषा टीका सहित ।
[६५३.
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लालसायें बनी हुई हैं तब तक मोक्ष की इच्छा करना, वायु को मुट्ठी में रोकने की चेष्टा करना है । इस लिये : सर्वप्रथम सांसारिक लालसाओं से पिंड छुडाना चाहिये । लालसाओं से पीछा छुड़ाने के लिये सब से प्रथम महापिशाचिनी हिंसा को त्यागना होगा। पिना हिंसा के त्याग किये लाल लाय विनष्ट नहीं हो सकती । हिंसात्याग के लिये पहले असत्य को त्यागना होगा। जहां झूठ है वहां हिसा है। जहां हिंसा है वहां लालसा है। लालसा मिटाने के लिए हिंसा के साथ झूठ का भी परित्याग करना पड़ता है । इसी प्रकार झूठ के. त्यागार्थ चोरी का त्याग करना आवश्यक है। चोरी करने वाला झूठ, हिंसा : और लालसा का ही उपासक होता है । इस लिये झूठ के साथ स्तेयकर्म का भी परित्याग कर देना चाहिये और चोरी के त्याग के निमित्त. ब्रह्मचर्य का पालन करना जरूरी है। बिना ब्रह्मा क्या पालन किये, बिना इन्द्रियों को वश में किये न तो चोरी छट.सकती है न असत्य -- और नाहि हिंसा । इस लिये हिंसा से ले. कर झूठायन्त सभी दाणों के व्यागार्थ: मैथुन का त्याग और ब्रह्म वयं का पालन नितान्त आवश्यक है। जैसे हिंसादि के त्यागाथ, ब्रह्मचर्य का पालन , अर्थात् इन्द्रियों का निग्रह करना आवश्यक है। उसो प्रकार ब्रह्मचर्य के लिये परिग्रह का त्याग करना होगा । सवः प्रकार के पापों का मूलस्त्रोत परिग्रह ही है । दूसरे शब्दों में इस श्रात्मा को जन्म मरणः --रूप. संसार में फिराने और भटकाने वाला परिग्रह ही है। इसी से सर्वप्रकार के पापाचरणों में यह जीव प्रवृत्त होता. हैं। इसलिये परिग्रह का परित्याग करो। उस के त्यागने से लालसा का अपने अकप: त्याग हो जाएगा . .. या ममत्व का नाम परिग्रह है। संसार की निस वस्तु पर आत्मा का ममत्व है, आत्मा के लिये वही परिग्रहःहै। अत: मोक्षरूप श्रानन्दनगर में प्रवेश करने के लिये परिग्रह का परित्याग परम आवश्यक है । जो अन्यात्मा, इस का-परिग्रह. काः जितने अंरा में त्याग करेगा, उस को लालसाए उतने हो अंश में, कम होती जावेगा। और जितनी २ लालसाएं कम होंगी उतना: २यहः अात्मा मोक्षामन्दिर के समीप अाता चला जाएगा । मोक्ष में, दुःख तो लेरा मात्र भी नहीं । वह तो आनंदस्वरूप है। वहां पर आत्मानुभूति के अतिरिक्त और किसी भी प्रकार की दुःखानुभूति को स्थान नहीं है । अत: मोक्षाभिलाषी जोवों के लिये यह परम आवश्यक है कि वे इस सारगर्भित सिद्धान्त का मनन करें और उस को यथाशक्ति आचरण में लाने का उद्योग करें ... इत्यादि 'भगवान् की इस मर्मस्पर्शी देशना को सुन कर नागरिक लोग और. महाराज अदीनशत्रु आदि जनता भगवान् को वन्दना तथा नमस्कार करके नगर को वापिस चली गई।
विश्ववन्द्य श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के समवसरण में उन के आज के उपदेश को विचारपूर्वक मनन करने और उसके अनुसार आचरण करने वालों में से एक सुबाहुकुमार का ही. इतिवृत्त हमें उपलब्ध होता है। शेष श्रोताओं के मन में क्या २ विचार उत्पन्न हुए और उन्होंने किस , हद तक भगवान् के सदुपदेश को अपनाया या अपनाने का यत्न किया है. इस का उत्तर हमारे पास नहीं है । हां ! सुबाहुकुमार जी.. के जीवन पर उस का जो प्रभाव हुआ, वह हमारे सामने अवश्य उपस्थित है।
भावान् की इस धर्मदेशना से सुबाहुकुमारः के हृदयगतः उन वि वारों को बहुत पुष्टि मिली जो कि उस नो तेले की तपस्या करते समय अपने हृद्रय में एकत्रित कर लिए थे । अब उस ने अपने उन, संकल्पों को
और भी दृढ़, कर लिया और वह शीघ्र से शोघ्र उन्हें कार्यान्वित करने के लिये उत्सुक हो उठा। तदनन्तर वद. विधिपूर्वक वन्दना, नमस्कार. कर के भगवान् के चरणों में बड़े विनीतभाव से इस प्रकार- बोला.
.. प्रभो! आपश्री जब यहां पहले पधारे थे, तो उस समय मैंने अपने-आप.को मुनिधर्म के लिये असमर्थ बतलाया था और तदनुसार श्राप से श्रावकोचित अणुव्रतों का ग्रहण कर के आपने आत्मा को सन्तोष
. (१) भगवान् की धर्मदेशनारूप सुधा का विशेषरूप से पान करने वालों को श्री औपपातिक सूत्र का धर्मदेशनाधिकार देखना चाहिये ।
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