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४८]
श्री विपाक सूत्र -
[प्रथम अध्याय
ऐसा विचार कर भगवान् गौतम । मियं देविं अति -मृगादेवी से जाने के लिये पूछते हैं । मियाए देवीर-मृगादेवी के । गिहाओ - गृह से । पडिनिकत्वमति-निकलते हैं, निकल कर । मियागामें- मृगाग्राम । णगरं-नगर के । मझमझेणं-मध्य में से हो कर उस से । निग्गच्छति२ -- निकल पड़ते हैं, निकल कर । जेणेव-जहां पर । सम्णे भगवं महावीरे - श्रमण भगवान् महावीर विराजमान थे। तेणेव- वहीं पर । उवागच्छति-श्रा जाते हैं । उवागच्छित्ता- श्रा कर । समणं भगवंश्रमण भगवान् । महावीरं- महावीर स्वामी की । आयाहिणपयाहिणं - दक्षिण की ओर से श्रावर्तन कर प्रदक्षिणा । करेति- करते हैं । करेत्ता-प्रदक्षिणा करने के पश्चात् । वंदति नमंसति-वन्दना तथा नमस्कार करते हैं। वंदित्ता नमंसिता -वन्दना एवं नमस्कार करके । एवं वयासो-इस प्रकार बोले एवं खलु-इस प्रकार निश्चय ही । अहं-- मैंने । तुन्भेहि-आर के द्वारा। अब्भणुराणाए समाणेअभ्यनुज्ञात होने पर । मियग्गामं जगरं- मृगाग्राम मगर के । मज्झमझेणं- मध्य मार्ग से हो कर, उस में । अणुपविसामि२-प्रवेश किया, प्रवेश करके । जेणेव- जहां पर । मियाए देवीए- मृगादेवी का । गिहे - घर था । तेणेव उवागते-उसी स्थान पर चला आया । तते णं - तदनन्तर । सावह । मियादेवी-मृगादेवी । मम एज्जमाणं - मुझ को आते हुए । पासति २- देखती है, देख कर ।
हट्ट - अत्यन्त प्रसन्न हुई और । तं चेव सव्वं-उस ने अपने सभी पुत्र दिखलाये । जाव - यावत् (पूर्व वणित शेष वर्णन समझना) । पूयं च सोणियं च- पूय-पीब और रुधिर का । आहारेतिउस बालक ने आहार किया । तते णं-तदनन्तर । मम-मुझे । इमे अज्झस्थिते६ -- ये विचार । समुपज्जित्था-उत्पन्न हुए । अहो णं-अहो-अाश्चर्य अथवा खेद है । इमे दारए-यह बालक । पुरा-पूर्वकृत प्राचीन कर्मों का फल भोगता हुआ । जाव-यावत् । विहरति-समय व्यतीत कर रहा
मूलार्थ-तदनन्तर उस महान् अशन, पान, खादिम, स्वादिम के गन्ध से अभिभृत-आकृष्ट तथा उस में मूर्छित हुए उस मृगापुत्र ने उस महान् अशन पान खादिम और स्वादिम का मुख से आहार किया। और जठराग्नि से पचाया हुआ वह आहार शीघ्र ही पाक और रुधिर के रूप में परिणत--परिवर्तित हो गया और साथ ही मृगापुत्र बालक ने पाकादि में परिवर्तित उस आहार का वमन (उलटी) कर दिया, और तत्काल ही उस वान्त पदार्थ को वह चाटने लगा अर्थात् वह बालक अपने द्वारा वमन किए हुए पाक आदि को भी खा गया। बालक की इस अवस्था को देख कर भगवान् गौतम के चित्त में अनेक प्रकार की कल्पनाएं उत्पन्न होने लगीं । उन्हों ने सोचा कि यह बालक पूर्व जन्मों के
(१) भगवान् गौतम ने जो महाराणी मृगादेवी से पूछा है उस का अभिप्राय केवल महाराणी को “अब मैं जा रहा हूँ" ऐसा सूचित करना है। आज्ञा प्राप्त करने के उद्देश्य से उन्हों ने राणी से यह पृच्छा नहीं की।
(२) (क)-रोटी, दाल, व्यंजन, तण्डुल चावल आदिक सामग्री अशन शब्द से विवक्षित है ।
(ख) पेय-पदार्थों का ग्रहण पान शब्द से किया गया है । (ग) दाख, पिस्ता, बादाम आदि मेवा, तथा मिठाई आदि खाने योग्य पदाथ स्वादिम के
अन्तर्गत हैं । (घ) पान, सुपारी, इलायची और लवंगादि मुखावास पदार्थ स्वादिम शब्द से गृहीत हैं ।
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