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१२८]
श्री विपाक सूत्र
[दूसरा अध्याय
इस भांति गौतम स्वामी ने राजमार्ग में सब तरह से सुसज्जित किये हुए घोड़ों देखा। घोड़ों के विशेषणों की व्याख्या हाथियों के विशेषणं' के तुल्य जान लेनी चाहिये, परन्तु जिन विशेषणों में अन्तर है उन की व्याख्या निम्नोक्त है -
. ... श्राविद्धगुडे --" अाविद्धगुडान् , अाविद्धा परिहिता गडा येषां ते तथा, अर्थात् उन घोड़ों को झूलें पहना रखी हैं।
ऊपर के हस्तिप्रकरण में गुडा का अर्थ झूल लिखा है जो कि एक हाथी का अलंकारिक उपकरण माना जाता है परन्तु प्रस्तुत अश्वप्रकरण में भी गुहा का प्रयोग किया है जब कि यह घोड़ों का उपकरण नहीं है । व्यवहार भी इसका सादी नहीं है फिर भी यहां गुड़ा का प्रयोग किया गया है, ऐसा क्यों है ? इसका उत्तर स्वयं घृत्तिकार देते हैं
"-गुड़ा च यद्यपि हस्तिनां तनुत्राणे रूढा तथापि देशविशेषापेक्षया अश्वानामपि संभवति । अर्थात् गुडा (झल) यद्यपि हस्तियों के तनुत्राण में प्रसिद्ध है, फिर भी देशविशेष की अपेक्षा से यह घोड़ों के लिये संभव हो सकता है।
.--प्रासारिपक्वरे-" अवसारितपक्खरान् , अवसारिता अवलम्बिताः पक्खराः तनुत्राराविशेषा येषां ते तथा, तान् -' अर्थात् पक्खर नामक तनुत्राण-कवच लटक रहे हैं, तात्पर्य यह है कि उन घोड़ों को शरीर की रक्षा करने वाले पक्खर नामक कवच धारण करा रखे हैं।
___ "-उत्तरकंचुइय--ओचूलमुहचंडाधरचामरथासक-परिमंडियकडिए-" उत्तरकञ्चुकिन-अवचूनक-मुखचएडाधर - चामर --स्थासक-परिमण्डितकटिकान् , उत्तरकचुक: तनुत्राण विशेष एव येषामस्ति ते तथा, तथाऽवचूलकमुखं चण्डाधरं - रौद्राधरौष्ठं येषां ते तथा, तथा चामरैः स्थासकैश्च दर्पण: परिमण्डिता कटी येषां ते तथा – ” अर्थात् उत्तरकंचक एक शरीर रक्षक उपकरणविशेष का नाम है, इस को वे घोड़े धारण किये हुए है। अवचूल कहते हैं - घोड़े के मुख में दी जाने वाली वलगा लगाम । उन घोड़ों के मुख लगामों से युक्त हैं इसलिये उनके अधरोष्ठ क्रोधपूर्ण एवं भयानक दिखाई देते हैं। और उन घोड़ों के कटे भाग चामरों (चामर-चमरी गाय के बालों से निर्मित होता है) और दर्पणों से अलंकृत हैं।
- आरुढ-अस्सारोहे . ' आरूढाश्वारोहान् , अारूढाः अश्वारोहाः येषु-” अर्थात् उन घोड़ों पर घुड़सवार आरूढ हैं -बैठे हुए हैं।
तदनन्तर गौतम स्वामी ने नाना प्रकार के मनुष्यों को देखा। वे भी हर प्रकार से सन्नद्ध , बद्ध हो रहे है। पुरुषों के विशेषणों की व्याख्या निम्नोत है ---
"-सन्नद्ध-बद्ध-वम्मिय कवर-सन्नद्धबद्ध-बर्मिकक पचान् ' की व्याख्या राज प्रश्नीय सूत्र में श्री मलय गिरि जी ने इस प्रकार की है
"कवचं-तनुत्राणं, वमै लोहमय-कसूलकादिरूपं संजातमस्येति वर्मितं, सनद्धं शरीरारोपणात् बद्धं गाढ़तरबन्धन बन्धनात्, वर्मितं ककां येन स सन्नद्व-बद्ध वर्मितकवचः” अर्थात् प्रस्तुत पदसमूह में चार पद हैं । इन में कवच (लोहे की कड़ियों के जाल का बना हुआ पहनावा जिसे योद्धा लड़ाई के समय पहनते है, जिरह बक़तर) विशेष्य है और १ – सन्नद्ध, २ - बद्ध तथा ३-वर्मित ये तीनों पद विशेषण हैं । सन्नद्ध का अर्थ है -शरीर पर धारण किया हुआ। बद्ध शब्द से, दृढ़तर बन्धन से बान्धा हुआ- यह अर्थ विवक्षित है और वर्मित पद लोहमय कसलकादि से युक्त का बोधक है । सारांश यह है कि उन मनुष्यों ने कववों को शरीर पर धारण किया हुआ है जो कि मजबूत बन्धनों से बान्धे हुए हैं, एवं जो लोहमय कसूलकादि से युक्त है।
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