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षष्ठ अध्याय 1
हिन्दी भाषा टीका सहित
[ ३५९
____ तथा उस दुर्योधन चारकपाल के पास अनेकविध लोहकोल, वंशशलाका, चर्मपट्ट, और अलण्ड के पुज और निकर लगे पड़े थे।
तथा उस दुर्योधन कोतवाल के पास अनेक सूइयों, दंभनों, और लघु मुद्गरों के पुज ओर निकर रक्खे हुए थे।
___ तथा उस दुर्योधन के पास अनेक प्रकार के शस्त्र, पिप्पल (लघु छुरे), कुठार, नग्दच्छेदक और दर्भ-लाभ के ज और निकर रक्खे हुए थे।
टीका - प्रस्तुत अध्ययन में प्रधानतया जिस व्यक्ति का वर्णन करना सूत्रकार को अभीष्ट है, उसके पूर्वभव का बत्तान्त सुनाने का उपक्रम करते हुए भगवान् कहते हैं कि हे गौतम ! इस जम्बूद्वीप नामक द्वीप के अन्तर्गत भारत वर्ष में सिंहपुर नाम का एक सुप्रसिद्ध और हर प्रकार की नगरोचित समृद्ध से परिपूर्ण नगर था। उसमें सिंहस्थ नाम का एक राजा राज्य किया करता था जो कि राजोचित गुणों से युक्त अत:एव महान् प्रतापी था । उसका दुर्योधन नाम का एक चारकपाल - कारागार का अध्यक्ष (जेलर) था, जोकि नितान्त अधर्मी, पतित और कठोर मनोवृत्ति वाला अर्थात् भीषण दंड दे कर भी पीछा न छोड़ने वाला तथा परम असन्तोषी और साधुजनविद्वेषी या । उसके कारागार के अन्दर - जेलखाने में दण्ड विधानार्थ नाना प्रकार के उपकरणों का संचय कर रखा था। उन उपकरणों को १० भागों में बांटा जा सकता है । वे दश भाग निनोक्त है -
(१) लोहे की अनेकों कुडिए थीं, जो श्राग पर धरी रहती थीं । जिन में ताम्र, पु, सीसक, कलकल और क्षारयुक्त तेल भरा रहता था।
(२) अनेकों उष्ट्रिका - बड़े २ मटके थे. जो घोड़ों, हाथियों, ऊंटों, गायों, भैंसों, बकरों तथा भेडों के मूत्र से परिपूर्ण अर्थात् मुंह तक भरे रहते थे ।
३) हस्तान्दुक, पादान्दुक, इडि, निगड और शृखला इन सब के पुज और निकर एकत्रित किये हुए रहते थे ।
(४) वेणुलता, वेत्रलता, चिंचालता, छिवा- इलक्षण चर्मकशा, कशा और वल्करश्मि, इन सब के युज और निकर रखे रहते थे ।
(५। शिला, लकुट, मुद्गर और कनं गर इन सब के पुज और निकर रखे हुए रहते थे । (६) तन्त्री, वरत्रा, वल्करज्जु वालरज्जु और सूत्रज्जु इन सब के पुज और निकर रखे रहते थे। (७) असिपत्र, करपत्र, क्षुरपत्र और कदम्बचीरपत्र इन सब के पुज और निकर रखे रहते थे। (८) लोहकोल, वंशशलाका, चर्मपट्ट और अलपट्ट इन सब के पु ज और निकर रखे रहते थे । (९) सूची. दम्भन और कौटिल्य इन सब के पुज और निकर रखे रहते थे ।
(१०) शस्त्रविशेष, पिप्पल, कुठार, नखच्छेदक और दर्भ इन सब के पुज और निकर रखे रहते थे।
ऊपरोक्त तात्र श्रादि शब्दों का अर्थसम्बन्धी ऊहापोह निम्नोक्त है -
ताम्र, त्रपु, सीसक. कलक न, क्षारतेल इन शब्दों का अर्थ पीछे पृष्ठ ३४४ पर लिखा जा चुका है । उष्ट्रिका का अर्थ है-''- उप्रस्याकारः पृष्ठावयवः इवाकारो यस्याः सा-" अर्थात् ऊंट के
आकार का लम्बी गर्दन वाला बर्तन । हिन्दी में जिसे मटका - माट कहा जाता है । हस्तान्दुक-हाथ बांधने के लिये काठ आदि के बन्धनविशेष - हथकड़ी को कहते हैं : पादान्दुक का अर्थ है-पाद बांधने का काष्ठमय उपकरण -पांव की बेड़ी । हडि-शब्द काष्ठमय बंधन विशेष के लिए अर्थात् काठ की बेड़ी इस अर्थ में
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