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५१४]
श्री विपाक सूत्र
[नवम अध्याय
गच्छन्ति २ सिरिं देविं निप्पाणं निच्चे? जीव विप्पजढं पासंति २ हा हा अहो अकज्जमिति कट्ट रोयमाणीओ २ जेणव पूसणंदी राया तेणेव उवागच्छन्ति २ पूसणंदिरायं एवं वयासी-एवं खलु सामी ! सिरी देवी देवदत्ताए देवीए अकाले चेव जीवियाओ ववरोविया ।
पदार्थ-तते गं-तदनन्तर । तीसे-उस । देवदत्ताए-देवदत्ता । देवीए -देवी के । अन्नया-अन्यदा । कयाइ-कदाचित् । पुम्वरत्तावरत्तकालसमयंसि-मध्यरात्रि के समय । कुडुम्बजागरियं-कौटुम्विक चिन्ता के कारण । जागरमाणीर-जागती हुई के । इमे- यह । एयारूवे-इस प्रकार का । अज्झस्थिते ५-संकल्प- विचार ५ । समुप्पज्जिथा-उत्पन्न हुा । एवं खलु- इस प्रकार निश्चय ही। पूसणंदी-पुष्यनन्दी । राया - राजा । सिरीए देवीए माइभत्त-श्रीदेवी का, यह पूज्या है, इस बुद्धि से भक्त । समाणे -- बना हुअा। जाव -यावत् । विहरति-विहरण करता है । तं-अत: । एएणं-इस । वक्खवेणं -- व्यक्षेप - बाधा से । नो-नहीं । संचाएमि-समर्थ हूँ। अहं-मैं । पूसणं दिणा-पुष्यनन्दी। रंगणा-राजा के । सद्धिं-साथ । उरालाई-उदार-प्रधान । माणुस्सगाई- मनुष्यसम्बन्धी । भोगभोगाई-विषयभोगों का। भुजमाणी-सेवन करती हुई । विहरित्तर-विहरण करने को, अर्थात् ऐसी दशा में मैं महाराज पुष्यनन्दी के साथ पर्याप्तरूप से विषयभोगों का उपभोग नहीं कर सकती। तं- इसलिये। सेयं-योग्य है । खलु -निश्चयार्थक है। ममं-मुझे। सिरिं देविं-श्री देवी को। अग्गिप्पभोगेण वा-अग्नि के प्रयोग से, अथवा । सत्थप्पोगेण वा-शस्त्र के प्रयोग से, अथवा । विसप्पोगण - विष के प्रयोग द्वारा। जीवियाओ-जीवन से । ववरोवित्ता-व्यपरोपित कर, पृथक् करके । पूसणं दिणा-पुष्यनन्दी । रगणाराजा के । सद्धि - साथ । उरालाई- उदार--प्रधान । माणुस्सगाई-मनुष्यसम्बन्धी। भोगभोगाईविषयभोगों का । भुजमाणी सेवन करते हुए । विहरित्तए -विहरण करना। एवं - इस प्रकार । संपेहेति २-विचार करती है, विचार कर । सिरोर देवीर-श्री देवी के । अन्तराणि य ३-१-अन्तर - जिस समय राजा का आगमन न हो, २-छिद्र - जिस समय राजपरिवार का कोई आदमी न हो, ३. विरह - जिस समय कोई सामान्य मनुष्य भी न हो, ऐसे अवसर की । पडिजागरमाणी २-प्रतीक्षा करती हुई २। विहरतिविहरण करने लगी-अवसर को प्रतीक्षा में रहने लगी। तते णं-तदनंतर । सा-वह । सिरी-श्री देवीदेवी। अन्नया-अन्यदा । कयाइ-कदाचित् । मज्जाविया - स्नान कराए हुए । विरहियसयणिज्जं. सि-एकान्त में अपनी शय्या पर । सुरप्पसुता जाया यावि-सुखपूर्वक सोई पड़ी। होत्था-थी। इमं च णं-और इधर अर्थात् इतने में लब्धावकाश । देवदत्ता- देवदत्ता । देवी-देवी । जेणेव-जहां । सिरीदेवी-श्रीदेवी थी । तेणेव-वहां पर । उबागच्छति २ -- अाती है, अाकर । मज्जावियं-स्नान कराये हुए । विरहियसयणिज्जंसि-एकान्त में अपनी शय्या पर । सु.पस-सुख से सोई हुई । सिरि देवि-माता श्रीदेवी को । पासति २-देखती है, देखकर । दिसालोयं-दिशा का अवलोकन करती है अर्थात् कोई देखता तो नहीं ', यह निश्चय करने के लिये वह चारों ओर देखती है, तदनन्तर । जेणेव-जहां । भत्तबरे-भक्तगृह - रसोई थी। तेणेव-वहां पर । उवागच्छइ २-पाजाती है, आकर । लोहदंडंलोहे के दंड को । परामुसति २ - ग्रहण करती है, ग्रहण कर । लोहदंडं-लोहदण्ड को । तवावेति २तपाती है, तपा कर । तत्तं-तपा हुआ । समजोतिभूतं - अमि के समान देदीप्यमान । फुल् लकिंतुयसमाणंविकसित-खिले हुए, किंशुक-केमू के कुसुम के समान लाल हुए लोहदण्ड को । संडासपणं-संडसाएक प्रकार का लोहे का चिमटा या औज़ार जिस से गरम चीजें पकड़ी जाती है, पंजाब में जिसे संडासी कहते हैं। गहाय -- पकड़ कर । जेणेव-जहां पर । सिरीदेवी -श्रीदेवी (सोई पड़ी थी)। तेणेव-वहां पर । उवा
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