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प्रथम अध्याय]
हिन्दी भाषा टीका सहित ।
को अपने दैनिक भोजनादि का ध्यान रहता है, वैसे उसे दैनिक अनुष्ठान सामायिक को भी याद रखना चाहिये
५- अनवस्थितसामायिककरण - अव्यवस्थित रीति से सामायिक करना. सामायिक की व्यवस्था न रखना अर्थात् कभी करना, कभी नहीं करना, यदि की गई है तो उस से ऊबना, सामायिकसमय पूरा हुआ है या नहीं है, इस बात का बार २ विचार करते रहना, सामायिक का समय होने से पहले ही सामायिक पार लेना आदि ।
२-देशावकारिक बत- श्रावक के छठे व्रत में दिशाओं का जो परिमाण किया गया है, उस का तथा अन्य व्रतो में की गई मर्यादा को प्रतिदिन कम करना । तात्पर्य यह है कि किसी ने आजीवन, वर्ष या मासादि के लिये "-मैं पूर्व दिशा में सौ कोस से आगे नहीं जाऊंगा-" यह मर्यादा की है, उस का इस मर्यादा को एक दिन के लिये, प्रहर आदि के लिये और कम कर लेना अर्थात् आज के दिन मैं पूर्व दिशा में दस कोस से आगे नहीं जाऊंगा, इस तरह पहली मर्यादा को संकुचित कर लेना या मर्यादित उपभोग्य
और परिभोग्य पदार्थों में से अमुक का श्राज दिन के लिये या प्रहर आदि के लिये सेवन नहीं करूंगा, इस भान्ति पूर्वगृहीत व्रतों में रखी मर्यादात्रों को दिन भर या दोपहर आदि के लिये मर्यादित करना देशावकासिक व्रत कहलाता है।
उपभोग्य और परिभोग्य पदार्थों का २६ बोलों में संग्रह किया गया है, यह पूर्व कहा जा चुका है परन्तु श्रावक के लिये प्रतिदिन चौदह नियमों के चिन्तन या ग्रहण करने की जो हमारी समाज में प्रथा है वह भी इस देशावकासिक व्रत का ही रूपान्तर है । अतः यथाशक्ति उन चौदह नियमों का ग्रहण अवश्य होना चाहिये । इस नियम के पालन से महालाभ की प्राप्ति होती है, उन नियमों का विवरण निम्नोक्त है
१-सचित्त - पृथ्वी, पानी, वनस्पति, सुपारी, इलायची, बादाम, धान्य, बीड़ा आदि सचित्त वस्तुओं का यथाशक्ति त्याग अथवा परिमाण करना चाहिये कि मैं इतने द्रव्य और इतने वज़न से अधिक उपयोग में नहीं लाऊंगा।
२-द्रव्य-जो पदार्थ स्वाद के लिये भिन्न २ प्रकार से तैयार किये जाते हैं, उन के विषय में यह परिमाण होना चाहिये कि आज मैं इतने द्रव्यों से अधिक का उपयोग नहीं करूंगा।
३ -विगय–दूध, दही, घृत, तेल और मिठाई ये पांच सामान्य विगय हैं । इन पदार्थों का जितना भी त्याग किया जा सके उतनों का त्याग कर देना चाहिये, अवशिष्टों की मर्यादा करनी चाहिये।
मधु, मक्खन ये दो विशेष विगय हैं इन का निष्कारण उपयोग करने का त्याग करना तथा सकारण उपयोग करने की मर्यादा करना । मद्य और मांस ये दो मह।विगय हैं, इन दोनों का सेवन अधर्ममूलक एवं दुर्गतिमूलक होने से सर्वथा छोड़ देना चाहिये ।
४-पन्नी-पांव की रक्षा के लिये जो जूते, मोजे, खड़ाऊ, बूट, चप्पल आदि चीजें धारण की जाती हैं, उन की मर्यादा करना ।
५-ताम्बूल-जो वस्तु भोजनोपरान्त मुखशुद्धि के लिये खाई जाती है, उन की गणना ताम्बूल में है। जैसे -पान, सुपारी, चूर्ण आदि इन सब की मर्यादा करना ।
६-वस्त्र-पहनने, अोढ़ने के वस्त्रों की यह मर्यादा करना कि मैं अमुक जाति के अमुक वस्त्रों से अधिक वस्त्र नहीं लूगा।
७-कुसुम-फूल, इत्र (अतर), तेल तथा सुगन्धादि पदार्थों की मर्यादा करना । ८-वाहन- हाथी, घोड़ा, ऊट, गाड़ी, तांगा, मोटर, रेल, नाव, जहाज़ अादि सब वाहनों की
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