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प्रथम अध्याय ]
हिन्दी भाषा टीका सहित।
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जागती हैं । इसी प्रकार किसी मांडलिक राजा के गर्भ में आने पर उन की मातायें इन चौदह स्वप्नों में से किसी एक स्वप्न को देख कर जागती हैं। सो महारानी धारिणी देवी भी इन्हों चौदह स्वप्नों में से एक को देख कर जागी हैं, इस लिए इन के गर्भ से पुत्ररत्न का जन्म होगा। वह बालक अपने शिशुभाव को त्याग कर युवावस्थासम्पन्न होने पर सर्वविद्यासम्पन्न और सर्वकलाओं का ज्ञाता होगा । युवावस्था में प्रवेश करने पर या तो वह बालक दानशील और राज्य को बढ़ाने वाला होगा या आत्मकल्याण करने वाला परमतपस्वी और अखण्ड ब्रह्मचारी मुनि होगा। तदनन्तर महाराज श्रेणिक ने स्वप्नशास्त्रियों को बहुमूल्य वस्त्राभूषणादि से सम्मानित कर विदा किया । स्वप्नशास्त्री भी महाराज श्रेणिक को प्रणाम करके अपने २ स्थान को चले गए।
गर्भ के तीसरे मास में महारानी को 'अकालमेघ का दोहद उत्पन्न हुआ, जिस के अपूर्स रहने से महारानी हतोत्साह हुई आर्तध्यान में ही रहने लगी। महाराज श्रेणिक को जब इस वृत्तान्त का पता चला, तब उन्हों ने उस को पूर्ण कर देने का आश्वासन देकर शान्त किया, अन्त में अभयकुमार के प्रयास से देवता के अाराधन से उसे पूर्ण कर दिया गया । तदनन्तर समय आने पर धारिणी ने एक सर्वाङ्गसम्पूर्ण पुत्ररत्न को जन्म दिया तथा उस का बड़े समारोह के साथ अकालमेघ दोहद के कारण "- मेघकुमार - " ऐसा गुण निष्पन्न नाम रक्खा गया । पुत्रजन्म के हर्ष में महाराज श्रेणिक और महारानी धारिणी ने अपने वैभव के अनुसार गरीबों, अनागों को जी खोल कर दान दिया । घर २ में मंगलाचार किया गया।
मेघकुमार का पालन पोषण उसी प्रकार हुअा, जिस प्रकार राजा, महाराजात्रों के बालकों का हुआ करता है । पांचों धायमाताओं की देखरेख में द्वितीया के चन्द्र की भान्ति सम्वर्द्धन को प्राप्त होता हुआ, योग्य शिक्षकों की दृष्टि तले ७२ कलाओं की शिक्षा प्राप्त करता हुआ, विद्या और विनयसम्पत्ति प्राप्त करने के साथ ही वह युवावस्था को प्राप्त हुआ। यह है मेघकुमार का प्रकृतोपयोगी संक्षिप्त जीवनवृत्तान्त । अधिक के जिज्ञासु श्री ज्ञाताधर्मकयांग सूत्र के प्रथम अध्ययन का अवलोकन कर सकते है ।
सुबाहूकुमार और मेघकमार के गर्भ में आने पर माता को आए हुए स्वप्नों में इतना ही अन्तर है कि महाराज श्रेणिक की श्रद्धांगिनी ने स्वप्न में हस्ती को देखा और अदीनशत्र की रानी ने सिंह के दर्शन किये । इसी विभिन्नता को दिखलाने के लिए मूल में "-सीई सुमिणे-" ऐसा उल्लेख कर दिया है । इस के अतिरिक्त अकालमेघ के दोहद से श्रेणिक के पुत्र का मेघकुमार नाम रखना और अदीनशत्रु की रानी धारिणी को बैसे दोहद का उत्पन्न न होना और सुबाहुकुमार यह नाम रखना, दोनों की नामगतविभिन्नता को सूचन कर
"--सुबाहुकुमारे जाव अलंभोगसमत्थं०-" यहां उल्लिखित जाव-यावत्-पद से -
(१) गर्भ के तीसरे महीने गर्भस्थ जीव के भाग्यानुसार जो माता को अमुक प्रकार का मनोरथ उत्पन्न होता है, उस की दोहद संज्ञा है। तदनुसार धारिणी को उस समय यह इच्छा हुई कि मेघों से आच्छादित आकाश को देखू परन्तु वह समय मेघों के आगमन का नहीं था, इसलिये उन से आच्छन्न श्राकाश को देखना बहुत कठिन था। ऐसी दशा में उक्त दोहद की पूर्ति कैसे हो ?, तब ज्ञात होने पर महामंत्री अभयकुमार ने देवता के श्राराधन द्वारा इस दोहद को पूर्ण किया अर्थात् देवी शक्ति के द्वारा मेघों से आकाश को आच्छादित कर धारिणी देवी को दिखलाया और उसके दोहद को सफल किया ताकि गर्भ में कोई क्षति न पहुंचे।
(२) ७२ कलाओं का विस्तारपूर्वक वर्णन पीछे १०८ से ले कर ११५ तक के पृष्ठों पर किया जा चुका है।
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