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प्रथम अध्याय ]
हिन्दी भाषा टीका सहित।
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कर वापिस अपने शयनभवन में आगई और अनिष्टोत्पादक कोई स्वप्न न आजाए, इस विचार से शेष रात्रि उस ने धर्मजागरण में ही बिताई ।
स्मानादि की आवश्यक क्रियाओं से निवृत्त हो कर महाराज बल ने अपने कौटुम्विक पुरुषों-राजपुरुषों द्वारा स्वप्नशास्त्रियों को आमन्त्रित किया और उन के सामने महारानी प्रभावती का पूर्वोक्त स्वप्न सुना कर उस का फल पूछा । स्वप्नशास्त्रियों ने भी "-आप के घर में एक सर्वाङ्गपूर्ण पुण्यात्मा पुत्र उत्पन्न होगा, जो कि महान् प्रतापी राजा होगा या अखण्डब्रह्मचारी मुनिराज होगा .....आदि शब्दों द्वारा स्वप्न का फलादेश कथन किया। तदनन्तर राजा ने यथोचित पारितोषिक दे कर उन्हें विदा किया।
___ लभभग नवमास के परिपूर्ण होने पर महारानी ने एक सर्वाङ्गसुन्दर पुत्ररत्न को जन्म दिया । राज. दम्पती ने बड़े आनन्द मंगल के साथ पुत्र का जन्मोत्सव मनाया तथा बड़े समारोह के साथ उस का नामकरणसंस्कार किया और “महाबल" ऐसा नाम रक्खा। तदनन्तर पांच धायमाताओं के संरक्षण में वृद्धि तथा किसी
शिक्षक से शिक्षा को प्राप्त करता हुआ युवावस्था को प्राप्त हुआ। तब महाराज बल ने महाबल के लिये विशाल और उत्तम अाठ प्रासाद - महल बनवाये और उन के मध्य में एक विशाल भवन तैयार कराया । तद
शुभ तिथि, करण, नक्षत्र और मुहूर्त में सुयोग्य पाठ राजकन्याओं के साथ उस का एक ही दिन में विवाह कर दिया गया। विवाह के उपलक्ष्य में राजा बल ने आठ करोड़ हिरण्य, पाठ करोड़ सुवर्ण, अाठ सामान्य मुकुट,
आठ सामान्य कुण्डलों के जोड़े, इस प्रकार को अनेकविध उपभोग्य सामग्री दे कर श्री महाबल कुमार को उन महलों में निवास करने का आदेश दिया और महाबलकुमार भी प्राप्त हुई दहेज की सामग्री को आठों रानियों में विभक्त कर उन महलों में उन के साथ सानन्द निवास करने लगा। यह है महाबल कुमार का प्रकृतप्रकरणानुसारी संक्षिप्त परिचय । विशेष जिज्ञासा रखने वाले पाठक महानुभावों को भगवतीसूत्र के ग्यारहवें शतक का ग्यारहवां उद्देश्य देखना चाहिये । वहां पल्योपम और सागरोपम के क्षयापचयमूलक प्रश्न के उत्तर में भगवान् महावीर स्वामी ने सुर्दशन को उसो का महाबलभवीय वृत्तान्त सुनाया था ।
राजकुमार महाबल का पाठ राजकुमारियों से विवाह हुश्रा-इस बात से विभिन्नता सूचित करने वाला सूत्रगत "--पुप्फचूलापामोक्खाणं-" इत्यादि उल्लेख है । इस में सुबाहुकमार का ५०० राजकन्याओं से विवाह होने का प्रतिपादन है तथा पांच सौ प्रीतिदान-दहेज देने का वर्णन है । सारांश यह है कि जिस प्रकार भगवती सूत्र में महाबल के लिये भवनों का निर्माण और उस के विवाहों का वर्णन किया है, उसी प्रकार श्री सुबाहुकुमार के विषय में भी जानना चाहिये, किन्तु इतना अन्तर है कि महाबलकुमार का कमलाश्री प्रभृति आठ राजकन्याओं से विवाह हुआ और सुबाहुकुमार का पुष्पचूलाप्रमुख ५०० राजकन्याओं से । इसी प्रकार वहां अाठ और यहां ५०० दहेज दिये गये। ___ -पंचसइओ दाश्रो जाव उप्पिं-यहां पठित -पंचसइओ दाश्रो-ये पद पृष्ठ ४७५ तथा ४७६ पर लिखे गए-पंचसयहिरण्णकोडीओपंचसयसुवरणकोडीओ-से ले कर-भासत्तमाओं, कुलवंसानो पकाम देउ पकामं भोत्तु पकामं परिभाए-"इन पदों के परिचायक हैं। अन्तर मात्र इतना है कि वहां सिंहसेन का वर्णन प्रस्तावित हुआ है जब कि यहां सुबाहु कुमार का । शेषवर्णन समान ही है। तथा जाव-यावत् पद -तए णं से सुबाहुकुमारे एगमेगाए भन्जाय पगमेगं हिरगणकोडिं दलयति। एगमेगं सुवरणकोडिं दलयति । एगमेगं मउडं दलयति एवं चेव सवं जाव एगमेगं पेसणकारिं दलयति । अन्नं च सुवहुं हिरणं जाव परिभाएदलयति । तते णं से सुबाहकमारे-इन पदों का ग्रहण करना सूत्रकार को इष्ट है। इन पदों का अर्थ इस प्रकार है
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