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श्री विपाकसूत्रीय द्वितीय श्रुतस्कन्ध
[ प्रथम अध्याय
यदि फलों की मर्यादा करना या स्नान करने से पहले मस्तक आदि पर लेप करने के लिये आंवले आदि फलों की मर्यादा करना ।
४ – अभ्यञ्जनविधिप्रमाण - त्वचासम्बन्धी विकारों को दूर करने के लिये और रक्त को सभी अवयवों में पूरी तरह संचारित करने के लिये जिन तैल आदि द्रव्यों का शरीर पर मर्दन किया जाता है उन द्रव्यों की मर्यादा करना ।
५ – उद्वर्त्तनविधिप्रमाण – शरीर पर लगे हुए तैल की चिकनाहट को दूर करने तथा शरीर में स्फूर्ति एवं शक्ति लाने के लिये जो उबटन लगाया जाता है, उस की मर्यादा करना ।
६ - मज्जनविधिप्रमाण - स्नान के लिये जल तथा स्नान की संख्या का परिमाण करना ।
७ - वस्त्रविधिप्रमाण- पहनने प्रोढने आदि के लिये वस्त्रों की मर्यादा करना । वस्त्रमर्यादा में लज्जारक्षक तथा शीतादि के रक्षक वस्त्रों का ही आश्रयण है, विकारोवादक वस्त्र तो कभी भी धारण नहीं करने चाहिए ।
८ - विलेपनविधिप्रमाण - चंदन, केसर आदि सुगन्धित तथा शोभोत्पादक पदार्थों की मर्यादा
करना ।
९ - पुष्पविधिप्रमाण - फूल तथा फूलमाला आदि की मर्यादा करना, अर्थात् मैं अमुक वृक्ष के इतने फूलों के सिवाय दूसरे फूलों को तथा वे भी अधिक मात्रा में प्रयुक्त नहीं करू ंगा, इत्यादि विकल्पपूर्वक पुष्प- सम्बन्धी परिमाण निश्चित करना ।
१० - श्राभरण विधिप्रमाण - शरीर पर धारण किये जाने वाले आभूषणों की मर्यादा करना कि मैं इतने मूल्य या भार के अमुक आभूषण के सिवाय और आभूषण शरीर पर धारण नहीं करूंगा ।
११ - धूपविधिप्रमाण- - वस्त्र और शरीर को सुगन्धित करने के लिये या वायुशुद्धि के लिये धूप देने योग्य अगर आदि पदार्थों की मर्यादा करना ।
ऊपर उन पदार्थों के परिमाण का वर्णन किया गया है जिन से या तो शरीर की रक्षा होती है या जो शरीर को विभूषित करते हैं। अब नीचे ऐसे पदार्थों के परिमाण का वर्णन किया जाता है, जिन से शरीर का पोषण होता है, उसे बल मिलता है तथा जो स्वाद के लिए भी काम में लाये जाते हैं -
१२ - पेयविधिप्रमाण - जो पीया जाता है उसे पेय कहते हैं । दूध, पानी आदि पेय पदार्थों की मर्यादा करना ।
१३ - भक्षणविधिप्रमाण - नाश्ते के रूप में खाये जाने वाले मिठाई आदि पदार्थों की, अथवा पकवान की मर्यादा करना ।
१४ - श्रोदन विधिप्रमाण- श्रोदन शब्द से उन द्रव्यों का ग्रहण करना अभिमत है जो विधिपूर्वक उबाल कर खाये जाते हैं। जैसे-चावल, खिचड़ी श्रादि, इन सब की मर्यादा करना ।
१५ – सूपविधिप्रमाण - सूप शब्द उन पदार्थों का परिचायक है जो दाल आदि के रूप में खाए जाते हैं, तथा जिन के साथ रोटी या भात आदि खाया जाता है अर्थात् मूंग, चना आदि दालों की मर्यादा करना ।
१६ - विकृतिविधिप्रमाण - विकृति शब्द दूध, दही, घृत, तैल और गुड़ शकर आदि का परिचायक है, इन सब की मर्यादा करना ।
१७ - शाकविधिप्रमाण - शाक, सब्जी आदि शाक की जाति का परिमाण करना । ऊपर के
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