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प्रथम अध्याय ]
यज्ञायतन की पूजा किया करते थे जक्खस्स जक्खायतणं-ये शब्द हैं ।
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हिन्दी भाषा टीका सहित ।
इन भावों का परिचायक - बहुजणो बच्चे कयवणमालपियस्स
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- महया० - यहां के बिन्दु से - हिमवंत महंतमलय मन्दरमहिंदसारे श्रच्चंत विसुद्ध दोहराकुलवंससुपसू गिरंतरं रायलक्खणविराइचंगमंगे बहुजण बहुमाणे पूजिए सव्वगुणसमिद्धे खत्तिए मुइए मुद्राहिसित्ते माउपिउसुजाए दयपत्ते सीमंकरे सीमंधरे खेमंकरे खेमंधरे मणुस्सिंदे जणवयपिया जणवयपाले जणवयपुरोहिए सेउकरे केउकरे गरपवरे पुरिसवरे पुरिससीहे पुरिसव पुरिसासीविसे पुरिसपुण्डरीए पुरिसवरगन्धहत्थी अड्ढे दित्त विशे विच्छिण्णविउलभवणसयणासणजाणवाहणाइराणे बहुधरणबहुजायरूवरयते श्राश्रोगपश्रोगसंपत्त विछडियमत्त पडरभत्तपाणे बहुदासदासीगोमहिसगवेल गप्पभूते पडिपुराणजंत कोस कोट्ठागाराउधागारे बलवं दुब्बलपच्चामित्त हटयं नियकंटयं मलिग्रकंटयं उद्धियकंटयं श्रकंटयं श्रोहयसत्तु ं निहयसत्त मलियसत्तु · उद्धिसत्त ं निज्जियसत्तु ं पराइ सत्त' ववगयदुब्भिक्खं मारिभयधिप्प मुक्कं खेमं सिवं सुभिक्ख पसन्तडिम्बडमरं रज्जं पसासेमाणे विहरइ – इन पदों का ग्रहण करना चाहिये। इन पदों का भावार्थ निम्नोत है
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वह राजा महाहिमवान् अर्थात् हिमालय के समान महान् था, तात्पर्य यह है कि जैसे समस्त पर्वतों में हिमालय पर्वत महान् माना जाता है, उसी भान्ति शेष राजाओं की अपेक्षा से वह राजा महान् था, तथा मलय पर्वतविशेष, मन्दर मेरु पर्वत, महेन्द्र - पर्वतविशेष अथवा इन्द्र, इन के समान वह प्रधान था । वह राजा अत्यन्त विशुद्ध निर्दोष तथा दीर्घ चिरकालीन जो राजाओं का कुलरूप वंश था, उस में उत्पन्न हुआ था । उस का प्रत्येक अंग राजलक्षणों - स्वस्तिक आदि चिह्नों से निरन्तर बिना अन्तर के शोभायमान रहता था । वह अनेक जनसमूहों से सम्मानित था, पूजत था । वह सर्वगुणसम्पन्न था। वह क्षत्रिय जाति का था। वह मुदित - प्रसन्न रहने वाला था । उसके पितामह तथा पिता ने उस का राज्याभिषेक किया था । वह माता पिता का विनीत होने के कारण सुपुत्र कहलाता था । वह दयालु था । वह विधान आदि की मर्यादा का निर्माता और अपनी मर्यादाओं का पालन करने वाला था । वह उपद्रव करने वाला नहीं था और नाहिं वह उपद्रव होने देता था । वह मनुष्यों में इन्द्र के समान था तथा उन का स्वामी था। देश का हितकारी होने के कारण वह देश का पिता समझा जाता था । वह देश का रक्षक था । शान्तिकारक होने से वह देश का पुरोहित माना जाता था । वह देश का मार्गदर्शक था । वह देश के अद्भुत कार्यों को करने वाला था । वह श्रेष्ठ मनुष्यों वाला था और वह स्वयं मनुष्यों में उत्तम था । वह पुरुषों में वीर होने के कारण सिंह के समान था । वह रोषपूर्ण हुए पुरुषों क्रोध को सफल करने में समर्थ होने के कारण वह पुरुषों भ्रमरों के लिये वह व ेत कमल के समान था । गजरूपी
में व्याव - बाघ के समान प्रतीत होता था । अपने में आशीविष - सर्पविशेष के समान था | अर्थीरूपी शत्रुराजाओं को पराजित करने में समर्थ होने के कारण वह पुरुषों में श्रेष्ठ गन्धहस्ती के समान था । वह श्राढ्य समृद्ध अर्थात् सम्पन्न था। वह श्रात्म - गौरव वाला था । उस का यश बहुत प्रसृत हो रहा था । उस के विशाल तथा बहुसंख्यक भवन – महलादि शयन शय्या, आसन, यान, वाहन - रथ तथा घोड़े आदि से परिपूर्ण हो रहे थे । उस के पास बहुत सा धन तथा बहुत सा चांदी, सोना था । वह सदा अर्थलाभ - आमदनी के उपायों में लगा रहता था वह बहुत से अन्न पानी का दान किया करता था। उस के पास बहुत सी दासिये, दास, गौर, भैंसें तथा भेड़ थीं । उस के पास पत्थर फेंकने वाले यन्त्र, कोष भण्डार,
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