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प्रथम अध्याय ]
हिन्दी भाषा टीका सहित।
चारों ओर से सुशोभित हो रहा था, उस में व्यापारी, कृषक, राजकर्मचारी, नर्तक, गायक, मल्ल, विदूषक, तैराक, ज्योतिषी, वैद्य, चित्रकार, सुवर्णकार तथा कुम्भकार आदि सभी तरह के लोग रहते थे । नगर का बाज़ार बड़ा सुन्दर था, उस में व्यापारि-वर्ग का का खूब जमघट रहता था । वहां के निवासी बड़े सज्जन और सहृदय थे। चोरों, उचक्कों, गांठकतरों और डाकुओं का तो उस नगर में प्रायः अभाव सा ही था । तात्पर्य यह है कि वह मगर हर प्रकार से सुरक्षित तथा भयशून्य था ।
नगर के बाहिर ईशान कोण में पुष्पकरण्डक नाम का एक विशाल अथच रमणीय उद्यान था। उस के कारण नगर की शोभा और भी बढ़ी हुई थी । वह उद्यान नन्दनवन के समान रमणीय तथा सुखदायक था, उस में अनेक तरह के सन्दर २ वृक्ष थे। प्रत्येक ऋतु में फलने और फूलने वाले वृक्षों और पुष्पलताओं की मनोरम छाया और आनन्दप्रद सगन्ध से दर्शकों के लिए वह उद्यान एक अपूर्व आमोद-प्रमोद का स्थान बना हुआ था। उस में कृतवनमाल प्रिय नाम के यक्ष का एक सप्रसिद्ध स्थान था जो कि बड़ा ही रमणीय एवं दिव्य-प्रधान था।
____ हस्तिशीर्ष नगर उस समय की सुप्रसिद्ध राजधानी थी। उस में अदीनशत्रु नाम के परम प्रतापी क्षत्रिय राजा का शासन था। अदीनशत्रु नरेश शरवीर, प्रजाहितैषी और पूरे न्यायशील थे । उन के शासन में प्रजा हर प्रकार से सुखी थी । वे स्वभाव से बड़े नम्र और दयालु थे, परन्तु अपराधियों को दण्ड देने, दुष्टों का निकंदन और शत्रों का मानमर्दन करने में बड़े कर थे । उन को न्यायशीलता और धर्मपरायणता के कारण राज्यभर में दुष्काल और महामारी आदि का कहीं भी उपद्रव नहीं होता था। अन्य माण्डलीक राजा भी उन से सदा प्रसन्न रहते थे । तात्पर्य यह है कि उन का शासन हर प्रकार से प्रशंसनीय था।
महाराज अदीनशत्र के धारिणी प्रभृति-श्रादि एक हज़ार देवियें थीं, जिन में धारिणी प्रधान महारानी थी। धारिणीदेवी सौन्दर्य की जीती जागती मूर्ति थी। इस के साथ ही वह आदर्श पतिव्रता और परम विनीता भी थी, यही कारण था कि महाराज के हृदय में उस के लिये बहु मान था । एक बार धारिणी देवी रात्रि के समय जब कि अपने राजोचित शयनभवन में सखशय्या पर सुखपूर्वक सो रही थी तो अर्धजागृत अवस्था में अर्थात् वह न तो गाढ़ निद्रा में थी और न सवा जाग ही रही थी, ऐसी अवस्था में उस ने एक विशिष्ट स्वप्न देखा । एक सिंह जिस की गरदन पर सनहरो बाल बिखर रहे थे। दोनों अांखें चमक रही थीं। कंधे उठे हुए, पूछ टेढ़ी और जंभाई लेता हुअा अाकाश से उतरता है और उस के मुंह में प्रवेश कर जाता है। इस स्वप्न के अनन्तर जब धारिणी देवी जागी तो उस का फल जानने की उत्कण्ठा से वह उसी समय अपने पतिदेव महाराज अदीनशत्र के पास पहुंची और मधुर तथा कोमल शब्दों से उन्हें जगा कर अपने स्वप्न को कह सुनाया। स्वप्न सुनाने के बाद वह बोली कि प्राणनाथ ! इस स्वप्न का फल बतलाने की कृपा करें ।
महागनी धारिणी के कथन को सुन कर कुछ विचार करने के अनन्तर महाराज अदीनशत्र ने कहा कि प्रिये ! तुम्हारा यह स्वप्न बहुत उत्तम और मगलकारी एवं कल्याणकारी है । इस का फल अर्थलाभ, पुत्रलाभ और राज्यलाभ होगा । विशेषरूप से इस का फल यह है कि तुम्हारे एक विशिष्टगुणसम्पन्न बड़ा शूरवीर पुत्र उत्पन्न होगा । दूसरे शब्दों में तुम्हें एक सुयोग्य पुत्र की माता बनने का सौभाग्य प्राप्त होगा। इस प्रकार पतिदेव से स्वप्न का शुभ फल सन कर धारिणी को बड़ी प्रसन्नता हुई और वह उन्हें प्रणाम कर वापिस अपने स्थान पर लौट आई। किसी अन्य दुःस्वप्न से उक्त शुभ स्वप्न का फल नष्ट न हो जाए इस विचार से फिर वह नहीं सोई, किन्तु रात्रि का शेष भाग उस ने धर्मजागरण में ही व्यतीत किया।
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