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श्री विपाकसूत्रीय द्वितीय श्रतस्कन्ध
प्रथम अध्याय
णंसि-वासभवन में-वासगृह में । सुमिणे-स्वप्न में । सीहं-सिह को (देखती है)। जहा- जैसे ज्ञाताधर्मकांग सूत्र में वर्णित । मेहजम्मणं-मेधकुमार का जन्म कहा गया है । तहा-तथा- उसी प्रकार माणियव्वं-वर्णन करना अर्थात् उस के पुत्र का जन्म मेघकुमार के समान ही जानना चाहिये। सुबाहकम सुबाहुकुमार को । जाव - यावत् । अलंभोगसमत्यं यावि -भोगों के उपभोग करने में सर्वथा समर्थ हुआ । जाणेति जाणित्ता-जानते हैं. भोगों के उपभोग में समर्थ जान कर । अम्मापियरो माता और पिता । पंचमासायडिंसगसयाई-जिस प्रकार भूषणों में मुकुट सर्वोत्तम होता है, उसी प्रकार महलों में उत्तम पांच सौ प्रासादों का निर्माण । कारेति-करवाते हैं ।अब्भुग्गया- जो कि अत्यन्त उन्नत थे और उन के मध्य में। भव.
-एक भवन तैयार कराते हैं। एवं -इस प्रकार । जहा -यथा अर्थात जैसे भगवती सूत्र में वर्णित महब्ब. लस्स रराणो-महाबल राजा का कथन किया गया है तद्वत् जानना चाहिये । णवरं-केवल इतना विशेष है कि । पुप्फचूलापामोकवाण-पुष्पचूला है प्रमुख-प्रधान जिन में ऐसी । पचण्हं रायवरकन्नगसयाणंपांच सौ श्रेष्ठ राजकन्याओं के साथ । एगदिवसेणं-एक दिन में । पाणि गराहावति . पाणिग्रहण - विवाह करा देते हैं । तहेव-उसी प्रकार अर्थात् महावल की भान्ति । पंचतानो-पांच सौ की संख्या वाला। दामो- दहेज प्राप्त हुआ जाव-यावत् । उदिप पासायवरगते-ऊपर सुन्दर प्रासादों में स्थित । फुष्टजिस में मृदंग बजाए जा रहे हैं, ऐसे नाटकों द्वारा । जाव -यावत विहति - विहरण करने लगा।
मूलार्थ-हे जम्बू ! उस काल और उस समय हस्तिशीर्ष नाम का एक बड़ा ही ऋद्ध, स्तिमित एवं समृद्धि पूर्ण नगर था। उस के बाहिर उत्तर और पूर्व दिशा के मध्य अर्थात् ईशान कोण में सर्व ऋतुओं में उत्पन्न होने वाले फल, पुष्पादि से युक्त पुष्पकरण्डक नाम का बड़ा ही रमणीय उद्यान था। उस उद्यान में कृतवनमालप्रिय नाम के यक्ष का एक बड़ा ही सुन्दर यक्षायतन-स्थान था । उस नगर में अदीनशत्र नाम के राजा राज्य किया करते थे, जो कि राजाओं में हिमालय आदि पर्वतों के समान महान् थे । अदीनशत्रु नरेश के अन्त:पुर में धारिणाप्रमुख एक हजार देवियें थीं। .
एक समय राजोचित वासभवन में शयन करती हुई धारिणो देवी ने स्वप्न में सिंह को देखा। इस के आगे जन्म आदि का संपूर्ण वृत्तान्त मेषकुमार के जन्म आदि की भान्ति जान लेना चाहिए. यावत सुबाहकुमार सांसारिक कामभोगों के उपभोग में सर्वथा समय हो गया अर्थात् पूर्णतया यौवनसम्पन्न हो गया, तथा सुबाहुकुमार को यावत् भोगोपभोगों में समर्थ हुआ जान कर माता पिता ने सर्वोत्तम पांच मोबडे चे प्रासाद और उनके मध्य में एक अत्यन्त विशाल भवन का निर्माण कराया. जिस प्रकार भाबतीतंत्र में वर्णित महाबल नरेश का विवाह सम्पन्न हुआ था. उसी भांति सबाहक मार का भी विवाह कर दिया गया, उस में अन्तर इतना है कि पुष्पचूला मुम्ब पांच सौ उत्तम राजकन्याओं के साथ एक ही दिन में उस का विवाह कर दिया गया और उसी तरह पृथक् २ पांच सौ प्रातिदान-दहेज दिए गए । तदनन्तर वह सुबाहुकुमार उस विशाल भवन में नाट्यादि से उपगीयमान होता हुआ उन देवियों के साथ मानवोचित मनोज्ञ विषयभोगों का यथारुचि उपभोग करने लगा।
टीका-अनगार श्री जम्बू की अभ्यर्थना को सुन कर आय श्री सुधर्मा स्वामी ने कहा कि हे जम्बू ! इस अवसर्पिणी काल के चौथे आरे में हस्तिशीर्ष नाम का एक नगर था जो कि अनेक विशाल भवनों से समलंकृत, धन, धान्य और जनसमूह से भरा हुआ था। वहां के निवासी बड़े सम्पन्न और सुखी थे। कृषक लोग कृषि के व्यवसाय से ईख, जौ, चावल और गेहूं आदि की उपज करके बड़ी सुन्दरता से अपना निर्वाह करते थे । नगर में गौएं और भैंसें आदि दूध देने वाले पशु भी पर्याप्त थे, एवं कूप, तालाब और उद्यान आदि से वह नगर
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