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श्री विपाक सूत्र
[ नवम अध्याय
विख्याति हो रही थी । नगर में अनेक धनी, मानी सद्गृहस्थ रहते थे, जिन से वह धन धान्यादि से युक्त और समृद्धिपूर्ण था। नगर में महाराज वैश्रमणदत्त राज्य किया करते थे, वे भी न्यायशील और प्रजावत्सल थे । उन की महारानी का नाम श्रीदेवी था, और पुष्यनन्दी नाम का एक कुमार था, जो कि अपनी विशेष योग्यता के कारण उस समय युवराज पद पर प्रतिष्ठित हो चुका था।
रोहीतक नगर व्यापार का केन्द्र था, वहां दूर २ से व्याशरी लोग आकर व्यापार किया करते थे । नगर के निवासियों में दत्त नाम का एक बड़ा प्रसिद्ध व्यापारी था, जो कि धनाढ्य होने से नगर में पर्याप्त प्रतिष्ठा प्राप्त किये हए था । उसकी कुणश्री नाम को सलावण्य में अद्वितीय भार्या थी। उनके देवदत्ता नाम को एक कन्या थी, जो कि नितान्त सुन्दरी थी। के किसी भी अंग प्रत्यंग में न्यूनाधिकता नहीं थी। अधिक क्या कहें उस का अपूर्व रूपलावण्य
को भी लज्जित कर रहा था । वास्तव में मानुषी के रूप में वह स्वर्गीया देवी थी।
रोहीतक नगर व्यापारियों के आवागमन से तथा राजकीय सुचारु प्रबंध से विशेष ख्याति को प्राप्त कर रहा था, परन्तु श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के पधारने से तो उस में और भी प्रगति आ गई । नगर का धार्मिक वातावरण सजग हो उठा। जहाँ देखो धर्म चर्चा, जहाँ देखो भगवान् के गुणों का वर्णन । तात्पर्य यह है कि प्रभु वीर के वहां पधार जाने से लोगों में हर्ष, उत्साह और धर्मानुराग ठाठे मार रहा था । उद्यान की तरफ जाते और अाते हुए नागरिकों के समूह, अानन्द से विभोर होते हुए दिखाई देते थे । उद्यान में आई हुई भावुक जनता को भगवान् की धर्मदेशना ने उस के जीवन में आशातीत परिवर्तन किया। । उस में धर्मानुरग बढ़ा, और वह धार्मिक बनी । उन के धर्मो. पदेश को सुन कर उस ने अपनी २ शक्ति के अनुसार धर्म में अभिरुचि उत्पन्न करते हुए धर्मसम्बन्धी नियमों को अपनाने का प्रयत्न किया।
वीर प्रभु की धर्मदेशना को सुन कर जब जनता अपने २ स्थान को चली गई तब परम संयमी परम तपस्वी अनगार गौतम स्वामी बेले का पारणा करने के लिए भिक्षार्थ नगर में जाने की प्रभु से आशा मांगते हैं । आज्ञा मिल जाने पर वे नगर में चले जाते हैं और वहां राजमार्ग में उन्हों ने एक स्त्री को देखा जो कि 'अवकोटकबन्धन से बन्धी हुई थी । उस के कान और नाक कटे हुए थे । उसी के मांसखण्ड उसे खिलाये जा रहे थे। निर्दयता के साथ उसे मारा जा रहा था और उस के चारों ओर पुरुष, हाथी तथा घोड़े एवं सैनिक पुरुष खड़े थे।
इस प्राकर सूली पर चढ़ाई जाने वाली उस स्त्री को देख कर गौतम स्वामी चकित से रह गये। विचारी अबला पर कितना अत्याचार हो रहा है ?. ये लोग भो कितने निर्दयी हैं ?, जो इस प्रकार के कर कृत्य को कर रहे हैं , न मालूम इस विचारी ने भी ऐसे कौन से कर्म किये हैं १, जिन से आज यह इस प्रकार अपमानित हो कर प्राण दे रही है ?, ऐसा भयंकर दृश्य तो नरकसम्बन्धी वेदनायों का स्मरण करा देने वाला है ।
___ करुणाशील सहृदय गौतम स्वामी उस महिला की उक्त दुर्दशा से प्रभावित हुए २ नगर से यथेष्ट आहार ले कर वापिस उद्यान में आते हैं और भगवान् के चरणों में बन्दना नमस्कार करने के अनन्तर राजमार्ग में देखे हुए करुणाजनक दृश्य को सुना कर उस स्त्री के पूर्वभव को जानने की जिज्ञासा करते हुए कहते हैं कि हे भदन्त ! वह स्त्री पूर्वभव में कौन थी ? जो नरक के तुल्य असम
(१) रस्सी से गले और हाथ को मोड़ कर पृष्ठ भाग के साथ बांधना अवकोटक बन्धन कहलाता है।
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