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'४८०]
श्री विपाक सूत्र -
नवम अध्याय
पदार्थ-तते णं-तदनन्तर । से-वह । सोहसेणे राया-सिंहसेन राजा । सामाए-श्यामा। देवीए- देवी में । मूच्छिते ४-१ -मूछित-उसी के ध्यान में पगला बना हुआ, २-गृद्ध - उस की आकांक्षा वाला. ३-ग्रथित -उसी के स्नेहजाल से बन्धा हुआ, ४-अध्युपपन्न - उसी में आसक्त हुअा २ । अवसेसानो-अवशेष-बाकी की । देविनो-देवियों का । णो आढाति -- आदर नहीं करता। णो परिजाणाति-उन की ओर ध्यान नहीं देता । अणाढायमाणे - आदर नहीं करता हुआ । अपरिजाणमाणे-ध्यान न रखता हा । विहरति-विहरण कर रहा है । तते णं - तासि-उन । एयणगाज-एक कम । पचहं देवीसयाणं -पांच सौ देवियों की । एक्कणाईएक कम । पंचाईसपाई -पांच सो माताएं, जो कि । इमीले-इस । कहाए-वृत्तान्त को । लट्ठाई समाणाई.-जान गई हैं, कि । एवं खनु -इस प्रकार निश्चय ही। सीहसेणे-सिंहसेन । राया - राजा । सामार देवीर-श्यामा देवो में । मूच्छिते ४-१-मूञ्छित, २-गृद्ध, ३-ग्रथित और ४-अध्युपपन्न हा २ । अम्हं-हमारी । धृपाश्री-पुत्रियों का। नो श्राढाति -अादर नहीं करता, तथा। जो परिजाणाति-ध्यान नहीं करता, तथा । अणाढायमाणे-आदर न करता हश्रा। अपरिजाणमाणे - ध्यान में रखता हुआ । विहरति-विहरण कर रहा है । त-छत्तः । सेय-योग्य है । खलु-निश्चयार्यक है। अम्हं- हम को अर्थात् हमें अब यही योग्य है कि । सामं देवि-श्यामा देवी को। अग्गिप्पओ गेण वा - अग्नि के प्रयोग से अपवा । विसप्पयो गेण वा-विष के प्रयोग से अथवा । सत्यप्पयोगेण वा.-शस्त्र के प्रयोग से । जीवियानो -जीवन से । ववरोवित्तर - व्यपरोपित करना. अर्थात जीवनरहित कर देना । एवं-इस प्रकार । संपति संपेहिता-विचार करती हैं. विचार करने के बाद। सामाए देवीए -श्यामा देवी के । अंतराणि य-अन्तर- अर्थात् जिस समय राजा का आगमन न हो । छिहाणि य-छिद्र अर्थात् जब राजा के परिवार का कोई भी व्यक्ति न हो । विरहामि य-विरह अर्थात् जिस समय और कोई सामान्य मनुष्य भी न हो, ऐसे समय की । पडिजागरमाणोरो पडिजागरमाणीओप्रतीक्षा करती हुई, प्रतीक्षा करती हुई । विहरति-विचरण करती हैं। तते णं-तदनंतर । सा-वह । मामा देवी-इयामा देवी, जो । इमीसे-इस । कहार-वृत्तान्त से । लद्वद्रा समाणा-लब्धार्थ हुई अर्थात् वह इस वृत्तांत को जान कर । एवं-इस प्रकार । वयासी - कहने लगी । एवं खलु-इस प्रकार निश्चय ही । ममं-मुझे । एगुणगाणं-एक कम । पंचण्हं सवत्तीसयाणंपाँच सौ सपत्नियों को । एक्कूणगाई-एक कम । पंचमाईसयाई-पांच सौ माताए । इमोसेइस । कहार -कथा-वृत्तांत को । लहाई समाणाई -जानतो हुई। अन्नमन्नं-परस्पर । एवं वयासो-कहने लगीं । एवं खलु-इस प्रकार निश्चय ही । सीडसेणे-सिंहसेन । जात्रयावत् । पडिजागरमाणो ओ-प्रतीक्षा करती हुई । विहरंति -विहरण कर रही हैं । तं-अतः । न - नहीं । नज्जति णं - जानती अर्थात् मैं नहीं जानती हूँ कि । मम --मुझे । केणति-किस । कमारेणं-कुमार अर्थात् कुमौत से । मारेस्संति-मारेंगी । ति का-ऐसा विचार कर । भीया ४ - १-भीता-भयोत्पादक बात को सुन कर भयभीत हुई, २ --त्रस्ता-मेरे प्राण लुट लिये जायेंगे, यह सोच कर त्रास को प्राप्त सुई, ३-उद्विग्ना-भय के मारे उस का हृदय कांपने लगा, ४ - संजातभय - हृदय के साथ २ उस का शरीर भी कांपने लगा, इस प्रकार १-भीत, २-त्रस्त, ३-उद्विग्न और ४ - संजातभय होकर श्यामा देवी। जेणेव-जहां । कोवघरे - कोपगृह था अर्थात् जहां क द्ध हो कर बैठा जाए. ऐसा एकान्त स्थान था। तेणेव-वहां पर । उवागच्छति उवागच्छित्ता-आती है, श्राकर। श्रोहय०-अप - तमन:संकल्ला-जिसके मानसिक संकल्प विकल हो गये हैं अर्थात् उत्साह से रहित मन वाली होकर ।
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