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नवम अध्याय ]
हिन्दी भाषा टीका सहित ।
[ ४९१
I
जेणेव - जहां। सीह सेणे - सिंहमेन । राया - राजा था। तेणेव - वहां पर । उवागच्छंति - श्राजाती हैं। तते णं - तदनन्तर । से - वह । सोइसेणे - सिंहसेन राया - राजा । एगुणगाणं - एक कम | पंचदेवीसयाणं पांच सौ देवियों की । एगूगगाणं एक कम । पंचमाइसयाणं - पांच सौ माताओं को । 'कूडागारसालं - कूटाकारशाला में | वसई - रहने के लिये स्थान । दलयति - दिलवाता है । तते जं तदनन्तर । से - वह | सोह लेणे - सिंहसेन । राया - राजा । कोडु बियपुरिसे - कौटुम्बिक पुरुषों अनुचरों को । सहावेति सद्दावित्ता - बुलाता है. बुलाकर एवं वयासी - इस प्रकार कहने लगा । देवाप्पिया ! हे भद्रपुरुषो ! । तुब्भे - तुम । गच्छइ णं - जाश्रो । विउलं विपुल । असणं ४ - अशनादि । उवणेह ले जाओ, तथा। सुबहु अनेकविध । पुष्क - पुष्प । वत्थ - वस्त्र । गंध-गंध-सुगन्धित पदार्थ । मल्लालंकारं - और माला तथा अलंकार को । कूडागारसालं - कूटाकारशाला में । साहरह - ले जाओ । तणं - तदनन्तर । ते वे। कोडु वियपुरिसा — कौटुम्बिक पुरुष । तहेव - तथैव - आज्ञा के अनुसार । जावं यावत् । साहरंति - ले जाते हैं अन् कूटाकारशाला में पहुंचा देते हैं । तते गं - तदनन्तर | तासिं - उन । एगुणगाणं - एक कम । पंचरहं देवीसयाणं- - पांच सौ देवियों की । एगूजगाइएक कम । पंचमाइसयाइ ं-पांच सौ माताएं । सञ्चालंकारविभूसियाइ - सम्पूर्ण अलंकारों से विभूति हुई ।
-उस । विडलं विपुल । असणं ४ – अशनादिक तथा । सुरं च ६ - ६ प्रकार की सुरा आदि मदिराओं का । श्रासादेमाणाइ ं ४- श्रास्वादनादि करती हुई । गंधव्वेहि य- गान्धर्वों – गायक पुरुषों तथा । नापहि य-नाटकों - नर्तक पुरुषों द्वारा । उवगिज्जमा गाई -उपगीयमान अर्थात् गान की गई । विहरन्ति-विहार करती हैं। तते णं - तदनन्तर । से - वह । सोइसेणे राया - महाराज सिंहसेन । श्रड्ढरत्तकालसन सिर्द्धरात्रि के समय । बहूहिं - अनेक । पुरिसेहिं - पुरुषों के । सद्धि- -साथ | संपरिवुडे घिरा हुआ । जेणेव - जहां । कूडागारसाला - कूटाकारशाला थी । तेणेव - वहां पर । उवागच्छति
वाचता-ता है, आाकर। कूडागारसालाप - कूटाकारशाला के । दुवाराई - द्वारों - दर्वाज़ों को । विहेति पिहिता बन्द करा देता है, बन्द करा कर । कूडागारसाला - कूटाकारशाला के । सव्वतो समंता - चारों तरफ से । श्रगणिकार्य - अग्निकाय अग्नि । दलयति - लगबा देता है । तते णं - तदनन्तर तासिं - उन । एगुणगाणं - एक कम । पंचरहं देवीसयणं - पांच सौ देवियों की । एगूजगाई- - एक कम । पंचमारलाई - पांच सौ माताएं। सीह सेणं - सिंहसेन । रराणा - राजा के द्वारा । श्रालीवियाइ समाणाइ - श्रादीप्त की गई अर्थात् जलाई गई। रोयमाणाई ३ - रुदन, आक्रन्दन और विलाप करती हुई । अत्तापाइ – त्राण - जिस का कोई रक्षा करने वाला न हो, और । श्रसरणाई - शरण – जिसे कोई शरण देने वाला न हो. काल म्मुखा - काल धर्म से । सनुताई - संयुक्त हुई । तते गं - तदनन्तर । से - वह | सोहले सिंहसेन । राया - राजा । एयकम्मे ४ -१ एतत्कर्मा, एतत्प्रधान, एतद्विद्य और एतत्समाचार होता हुआ | सुबहुं - अत्यधिक । पावं कम्मं - पाप कर्म को । समज्जिणित्त – उपार्जित कर के । चौत्तोस - ३४ । वाससयाई - सौ वर्ष की । परमाड - परमायु । पालइत्ता - भोग कर । कातमासे-काल मास में काजं किवा -काल कर के । छुट्ठीप-छठी । पुढवीप - पृथिवी नरक में । उक्कोसेणं - उत्कृष्ट – अधिकाधिक वावीससागरोवमपिसु - बाईस सागरोपम स्थिति वाले । नेरइरसुनारकियों में । नेरइयत्ताए - नारकीय रूप से । उववन्नेI - उत्पन्न हुआ ।
मूलार्थ - तत्पश्चात् वद सिंहसेन राजा किसी अन्य समय पर एक कम पांच सौ देवियों की (१) एतत्कर्मा, एतत्प्रधान आदि पदों का अर्थ पृष्ठ १७९ के टिप्पण में लेखा जा चुका है ।
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