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श्रो विपाक सूत्र--
[नवम अध्याय
पुरिसे-पुरुषों को । सदावेति- बुलाता है। सहावित्ता-बुला कर । एवं-इस प्रकार । वयासी-कहने लगा । देवाणुप्पिया ! - हे भद्र पुरुषो ! । तुझे-तुम लोग । गच्छदणं-जाप्रो । दत्तस्स -दत्त की। धूयं-पुत्री । काहसिरीए-कृष्णश्री की । अत्तयं - अात्मजा । देवदत्तदारियं-देवदत्ता दारिका–बालिका को । पूसणंदिस्स -पायनन्दी । जुवरराणो - युवराज के लिए । भारियत्तार-भार्यारूप से । वरेहमांगो १ । जइ वि य -और यद्यपि । सा-वह । सयजनुक्का-स्वकीय राज्यलभ्या है अर्थात् यदि राज्य के बदले भी प्राप्त की जा सके तो भी ले लेनी योग्य है। तते णं -तदनन्तर । ते-वह । अभिंतरठाणिज्जाअभ्यन्तरस्थानीय । परिसा-पुरुष । वेसमणरणा-वैश्रमण राजा के द्वारा । एवं वुत्ता समाणा- इस प्रकार कहे गये। हतुट्ठा -- अत्यधिक हर्ष को प्राप्त हो । करतला -हाथ जोड़ । जाव-यावत् । एयम?-- इस बात को । पडिपुणेति २- स्वीकार कर लेते हैं, स्वीकार कर । राहाया-स्लान कर । जाव-यावत् । सुद्धप्पेवसाई-शुद्ध तथा राजसभा आदि में प्रवेश करने के योग्य । वत्थाई पवरपरिहिया-प्रधान-उत्तम वस्त्रों को धारण किये हुए । जेणेव जहां । दत्तस्स - दत्त का। गिहे-घर था । तेणेव-वहां पर । उबागया - श्रागये , तते णं तदनन्तर । से- वह । दत्त - दत्त । सत्यवाहे-सार्थवाह । ते-उन । पुरिसे-पुरुषों को । एज्जमाणे अाते हुओं को । पासति-देखता है । पासित्ता-देख कर । हतुट्टे बड़ा प्रसन्न हुआ और अपने । आसणाओ-आसन से | अब्भुट्टेति-उठता है, और । सत्तहप. याइ-सात आठ पर-कदम | अभूमाते-आगे जाता है, तथा । श्रासणेणं-पासन से । उवनिमतेतिनिमंत्रित करता है अर्थात् उन्हें श्रासन पर बैठने की प्रार्थना करता है। उवनिमंतेत्ता - इस प्रकार निमंत्रित कर, तथा । आस थे -आस्वस्थ अर्थात् गतिजन्य श्रम के न रहने से स्वास्थ्य -शान्ति को प्राप्त हुए। वि. सत्थे -विस्वस्थ अर्थात् मानसिक क्षोभाभाव के कारण विशेष रूप से स्वास्थ्य को प्राप्त हुए । सुहासणवरगतेसुखपूर्वक उत्तम अासनों पर बैठे हुए । ते-इन । पुरिसे-पुरुषों के प्रति । एवं वयासा-इस प्रकार बोला । देवाणुप्पिया!-हे महानुभावो ! । संदिशंतु एं-पाप फरमा। किमागमणपोयणं-अप के अागमन का क्या हेतु है ?, अर्थात् आप कैसे पधारे हैं । तते णं-तदनन्तर । ते-वे । रायपुरिसा-राजपुरुष । दत्तं सत्यवाहं -दत सार्थवाह के प्रति । एवं वयासी-इस प्रकार कहने लगे । देवाणुप्पिया! - हे महानुभाव ! । अम्हे णं- हम । तव-तुम्हारी धूयं-पुत्री । का इमिरि अत्तयं-कृष्णश्री की अात्मजा । देवदत्-देवदत्ता । दारियं - बालिका को। पूसणंदिस्त -पुष्य नन्दो । जुधरराणो-युवराज के लिये। भारियत्ताए -भार्यारूप से । वरेमा - मांगते हैं ? । तं - अत: । जति णं- यदि । देवाणुप्पिया-श्राप महानुभाव । जुत्तं वा-युक्त - हमारी प्रार्थना उचित । पत्तं वा - प्राप्त - अवसरप्राप्त । सलाहणिज्ज-श्ला. घनीय तथा संजोगो वा--- वधूवर का संयोग । सरिसो वा-समान -तुल्य । जाणासि-समझते हो । ता -
तो। दिज्जर णं - दे दो । देवदत्ता - देवदत्ता को। जुवररणा-युवराज । पूसणंदिस्स- पुष्यनन्दी के लिये। भण -कहो । देवाणुप्पिया! - हे महानुभाव ! ार को । किं- क्या । सुक्कं शुक्ल - उपहार । दलयामो-दिलवायें । तते णं-तदनन्तर । से-वह । दत्ते-दत्त । ते-उन । अभितरवाणिज्जेअभ्यन्तरस्थानीय । पुरिसे - पुरुषों के प्रति । एवं वयासी- इस प्रकार बोले । देवाणुप्पिया! - हे महानुभावो ! । एतं चेव -यही । मम - मेरे लिये। सुक्क-शुक्ल है । ज णं-जो कि । वेसमणदत्ते रायामहाराज वैश्रमणदत्त । ममं - मुझे। दरियाणिमित्तणं-इस दारिका–बालिका के निमित्त से । अणुगिहइअनुगृहीत कर रहे हैं, इस प्रकार कहने के बाद । ते-उन । ठाणपुरिसे- स्थानीय पुरुषों का । विउलेणंविपुल । पुष्क-पुष्प । वस्य-वस्त्र । गंध-सुगंधित द्रव्य । मल् लालंकारेणं-माला तथा अलंकार से । सरकारेति २ –सत्कार करता है, सत्कार कर के। पडिविसज्जेति - उन्हें विसर्जित करता है । तते गं
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