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४७.]
श्री विपाक सूत्र
[ नवम अध्याय
सुरति णाम नगरे होत्या, रिद्ध० । महासेणे राया, तस्स णं महासेणस्त धारिणीपामुक्खं देवीसहस्सं ओरोहे यावि होत्या । तस्स णं महासेणस्स पुत्ते धारिणीए देवीए अत्तए सीहसेणे णाम कुमारे होत्था, अहोण० जुवराया । तते णं तस्स सीहसेणस्स कुमारस्स अम्बापितरो अन्नया कयाइ पंचपासायवडंसगसयाई काति, अब्भुगतः । तते स तस्स सीहसेणस्स कुमारस्स अन्नया कयाइ सामापायोक्खाणं पंचएहं रायवरकन्नगसयाणं एगदिवसेणं पाणि गेहावसु । चसयो दायो। तते णं से सीहसेणे कुमारे सामापामोखेहि पंचहि देवीसतेहिं सद्धि उप्पि जाव विहरति । तते णं से पहाणे राया अन्नया कयाइ कालधामुणा संजुत्ते, नीहरणं० । राया जाते महया० ।
पदार्थ-एवं खलु- इस प्रकार निश्चय ही । गोयमा! -हे गौतम !। तेणं कालेणं तेणं समरणं-उस काल तथा उस समय । इहेव - इसी । जंबुद्दी-जम्बूद्वीप नामक । दीवे-द्वीप के अन्तर्गत । भारहे वासे-भारत वर्ष में | सुपति-सुप्रतिष्ठ । णाम-नामक । णगरे-नगर। होत्था-था, जो कि रिद्ध-श्रद्ध-भवनादि के आधिक्य से युक्त. स्तिमित-आन्तरिक और बाह्य उपद्रवों के भय से रहित, तथा समृद्ध --धन धान्यादि से परिपूर्ण, था। महासेणे राया-महासेन नामक राजा था। तस्सगां-उस महासेणस्स-महासेन की। धारिणीपासखं-जिस में धारिणी प्रमख-प्रधान हो ऐसी। देवीसहस्सं-हजार देविएँ । ओरोहे-अवरोध --अन्त:पुर में । यावि होत्था-थीं । तस्स - उस । महासेण स्त-महासेन का । पुते-पुत्र । धारिणीर -धारिणी । देवीर-देवी का । अतए - अात्मज । सीहसेणे-सिंहसेन । णाम-नामक । कुमारे-कुमार । होत्था-था। अहीण-जो कि अन्यून एवं निर्दोष पांच इन्द्रियों वाले शरीर से युक्त, तथा । जुबराया-युवराज था। तते ए-तदनन्तर । तस्स-उस । सीहसेणस्स-सिंहसेन । कुमारस्त-कुमार के । अम्मापितरो-माता पिता । अन्नया कयाइ-किसी अन्य समय । अब्भूगत०-अत्यन्त विशाल । पंचपासायवडंसगसयाई-पांच सौ प्रासादावतंसक-श्रेष्ठ महल । कारति-बनवाते है । तते णं-तदनन्तर । तस्स - उस । सीइसेणस्तसिंहसेन । कुमास्स -कुपार का । अनया काइ-किसी अन्य समय । सामापामोखाण -जिस में श्यामा देवी प्रधान थी ऐसी । पंचएहं रायवरकन्नगसया-पांच सौ श्रेष्ठ राज कन्याओं का । एगदिवसेणं-एक दिन में । पाणिं गए दावे -पाणिग्रहण करवाया। पंचसय प्रो-पांच सौ। दामोप्रीतिदान - दहेज दिया । तते णं- तदनन्तर । से-वह । सोहसेणे -- सिंहसेन । कुमारे-कुमार । कुमारस्याम्पापितरौ, अन्यदा कदाचित् 'पंचप्रासादावतंसकशतानि कारयत: , अभ्युद्गत० । ततस्तस्य सिंहसेनस्य कुमारस्य अन्यदा कदाचित् श्यामाप्रमुखाणां पंचानां राजवरकन्यकाशतानामेकदिवसेन पाणिमग्राहयताम् । पंचशतको दायः । ततः स सिंहसेनः कुमार: श्यामाप्रमुख: पंचभि: देवीशतैः सामुपरि यावत् विहरति । तत: स महासेनो राजा, अन्यदा कदाचिद् कालधर्मण संयुक्तः । निस्सरणं० । राजा जातो महा० ।
. (१) अवतंसका इवावतंसकाः शेवराः, प्रासादाश्व तेऽवतंसकाः प्रासादावतंसकाः तेषां पंचशतानीत्यर्थः । अर्थात् प्रासाद महल का नाम है । अवतंसक शब्द प्रकृत में शिरोभूषण के लिये प्रयुक्त हुआ है। तात्पर्य यह है कि जैसे शरोभूषण सत्र भूषणों में उन्नत एवं श्रेष्ठ माना गया है, उसी तरह वे प्रासाद भी सब प्रासादों में श्रेष्ठ थे, और उनकी संख्या ५०० थी ।
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