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४१०]
श्री विपाक सूत्र
[सप्तम अध्याय
मि णं जाव विणित्तए । तते णं से सागरदचे सत्यवाहे गगादत्ताए भारियाए एयमट्ट अणुजाणेति । तते णं सा गंगादत्ता सागरदत्तेणं सत्थवाहेणं अभणुगणाता समाणी विउलं असणं ४ उवक्खडावेति २ तं विउलं असणं ४ सुरं च ६ सुबहुँ पुप्फ० परिगण्हावेति २ बहूहिं जाव रहाया कय० जेणेव उंबरदत्तजक्खाययणे जाव धूवं डहति २ जेणेव पुक्खरिणी तेणेव उवागता । तते संतानो मित्त० महिलामो गंगादत्तं सत्यवाहि सव्वालंकारांवभूसियं करेंति । तते णं सा गंगादत्ता ताहि मित्त० अन्नाहिं य यहूहि ण गरमहिलाहिं सद्धि तं विउलं असणं ४ सुरं च ६ आसाएमाणी ४ दोहलं विणेति २ जामेव दिसं पाउन्भूता तामेव दिलं पडिगता । तते णं सा गंगादना भारिया संपुण्णदोहला ४ तं गम्भं सुहंसहेणं परिवहति ।
पदार्थ-तते णं-तदनन्तर । से-वह । धन्नं तरी-धन्वन्तरि । वेज्जे-वैद्य । ततो-उस । गरगाओ--नरक से । अणंतरं-अन्तररहित - सीधा । उवहित्ता-निकल कर । इहेव- इसी । पाडलिसंडे-पाटलिषण्ड । णगरे-नगर में । गंगादत्ताए - गंगादत्ता। भारियाए -भार्या की। कुच्छिसि - कुक्षि-उदर में । पुत्तत्ताए-पुत्ररूप से । उववन्ने- उत्पन्न हुआ। तते णं - तदनन्तर । तीसे-उस । गंगादत्ताए-गंगादत्ता । भारियाए - भार्या के । तिरह-तीन । मासाणं-मासो के । बहुपडिपुराणाणं-लगभग पूर्ण होने पर । अयमेयारुवे--यह इस प्रकार का । दोहले-दोहद – गर्भिणी स्त्री का मनोरथ । पाउन्भूते- उत्पन्न हुआ। ताओ अम्मयाओ-वे माताएं । घण्णाओ णं-धन्य हैं । जाव-यावत् । फले- उन्हों ने ही जीवन के फल को प्राप्त किया हुआ है । जाओ णं-जो । विउलं-विपुल । असणं ४-अशन पानादिक । उवरखडार्वति २-तैयार कराती हैं, करा कर । वहूहिंअनेक । मित्त०-मित्र, ज्ञातिजन आदि की । जाव- यावत् महिलाओं से। परिवुड़ाओ- परिवृत-घिरी हुई। तं-उस । विउलं-विपुल । असणं ४ - अशनादिक चतुर्विध अाहार तथा। सुरं च ६६ प्रकार के सुरा आदि पदार्थों और । पुष्फ० -- पुष्यों । जाव-यावत् अर्थात् वस्त्रों, सुगन्धित पदार्थों, मालाओं और अलंकारों को । गहाय-लेकर । पाडलिसंडं- पाटलिपंड । णगरं - नगर के । मझमज्भेणंमध्य भाग में से। पडिणिक्वमंति २ -- निकलता हैं, निकल कर । जेणेव- जहां । पुक्वरिणीपुष्करिणी है । तेणेव-वहां । उवागच्छन्ति - आती हैं, अाकर । पुक्वरिणिं-पुष्करिणी का। ओगाईति २- अवगाहन करती है-उस में प्रवेश करती हैं, प्रवेश करके । राहाया-स्नान की हुई। जाव-यावत् । पायच्छित्ताओ-अशुभ स्वप्नादि के फल को विफल करने के लिये मस्तक पर तिलक एवं मांगलिक कार्य की हुई । तं-उस । विउलं-विपुल । असणं ४ -अशनादि का । बहूहि-अनेक मित्र, ज्ञातिजन आदि की महिलाओं के । सद्धि - साथ । प्रासादेंति ४-आस्वादनादि करती हैं, अपने। दोहलं-दोहद को । विणंति -पूर्ण करती हैं । एवं- इस प्रकार । संपेहेति २ --विचार करती है, विचार करके। कल्लं- प्रात:काल । जाव-यावत् । जलंते-देदीप्यमान सूर्य के उदित हो जाने पर । जेणेव-जहां । सागरदत्त -सागरदत्त । सत्थवाहे - सार्थवाह-संघनायक था। तेणेव --वहां पर। उवागच्छति २-आती है, आकर । सागरदत-सागरदत्त | सत्यवाई-सार्थवाह को। एवं- इस प्रकार | वयासी-कहने लगी। धन्नाप्रोणं-धन्य हैं । ताओ अम्मयात्रो-वे माताएं । जार-यावत् । विणेति - दोहद की पूर्ति करती हैं । तं-इस लिए । इच्छामि णं-मैं चाहती हूँ। जाव-यावत् । विणित्तर --अपने दोहद की पूर्ति करना । तते णं-तदनन्तर । से- वह । सागरदत्ते-सागरदत्त । सत्थवाहे --- सार्थवाह । गंगादत्ताए-गंगादत्ता । भारियाए-भार्या को। एयम8-इस अर्थ - प्रयोजन के लिये । अणुजाणेति -
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