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अष्टम अध्याय
हिन्दी भाषा टीका सहित
[४३१
मैंने ने एक व्यक्ति को देखा इत्यादि । उस दृष्ट व्यक्ति की सारी अवस्था को गौतम स्वामी ने कह सुनाया । तदनन्तर वे फिर बोले - भगवन् ! वह दु:खी जीव कौन है ?, उसने पूर्वभव में ऐसे कौन से अशुभ कर्म किये हैं. जिन का कि वह यहां पर इस प्रकार का फल भोग रहा है ?. गौतम स्वामी को उक्त जिज्ञासा का ध्यान रखते हुए उस के उत्तर में भगवान् महावीर स्वामी ने जो फरमाया उस का विवर्ण अग्रिम सूत्रों में किया गया है ।
-सुक्खं, भुक्खं-इत्यादि पदों की व्याख्या निम्नोक्त है१-सुक्खं-शुष्कम् - अर्थात् रुधिर के कम हो जाने के जो सूख रहा हो उसे शुष्क कहते हैं ।
२-भुक्खं बुभुक्षितम् अर्थात् भुक्ख यह देश्य देशविशेष में बोला जाने वाला पद है, जो बुभुक्षित इस अर्थ का परिचायक है । क्षुधा - भख से पीडित व्यक्ति बुभुक्षित कहलाता है ।
-जिम्मंसं निमोसम - भोजन दि के अभाव से जो मांस से रहित हो रहा है उसे निर्मास कहते हैं।
४-अट्टिचम्मावणद्धं – अस्थिचावनम् - अतिकत्वादस्थिसंलग्नचर्मकमित्यर्थ:अर्थात् अतिकृश हो जाने के कारगा जिसका चर्म - चमड़ा अस्थियों--- हड्डियों से अवनद्ध-चिपट रहा
र्य यह है कि मांस और रुधिर की अत्यधिक क्षोणता के कारण जो अस्थिचर्मावशेष दिखाई पड़ रहा है वह अस्थिचौवनद्ध कहा जाता है ।
५-किडिकिडियाभूयं-किटि किटिकाभूतम् , अतिकृशत्वादुपवेशनादिक्रियायां किटिकिटिकेति शब्दायमानास्थिम- अर्थात अतिकश -दर्बल हो जाने के कारण बैठने और उठने
आदि की क्रिया से जिस की अस्थिए किटिकिटिका-ऐसे शब्द करती हैं, इसलिए उसे किटिकिटिकाभत कहा जाता है ।
____६--णीलसाडगनियत्थं - नीलशाटकनिवसितम् , नोलशाटकं - नोलपरिधानवस्त्रं, निवसितं परिहितं येन यस्य वा स तमिति भावः- अर्थात् जिस ने नीले वर्ण का शाटक-धोती या सामान्य पहरने का वस्त्र धारण कर रखा है, वह नीलसाटकनिसित कहलाता है : इस पद में भगवान् गौतम ने जिस पुरुष को देखा है, उस के परिधानीय वस्त्र का परिचय कराया है।
(७) मच्छकराटएणं गलर अणुलागणं --मत्स्यकंटकेन गलेऽनुलग्नेन कराउप्रविष्टे नेत्यर्थः--, अर्थात् ये पद-मत्स्यकएटक के कण्ठ में प्रविष्ट हो जाने के कारण - इस अर्थ के परिचायक हैं। मत्स्य का कांटा मत्स्य कराटक कहलाता है । मत्स्ट का कांटा बड़ा भीषण होता है, वह यदि कण्ठ में लग जाए तो उस का निकलना अत्यधिक कठिन हो जाता है ।
८-कष्ट, करुण, विस्वर तथा पूयकवल रुधिरकवल और कृमिक वल इन शब्दों का अर्थ पीछे पृष्ठ ३८० पर लिखा जा चुका है ।
प्रस्तुत में सुकावं इत्यादि पद द्वितीयान्त हैं अतः अर्थसंकलन में मूलार्थ की भान्ति द्वितीयान्त की भावना कर लेनी चाहिये ।
समोसढे जाव गो-यहां पठित जाव-यावत पद पृष्ठ २०४ पर पढे गये-परिसा निग्गया राया निग्ग प्रो, धम्मो कहिया परिसा राया य पडि- इन पदों का परिचायक है। ___ -जेह जाव सोरियपुरे- यहां पठित जाव --यावत् पद - अन्तेवासी गोयमे छक्खमणपारणगंसि पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेइ, बीयाए पोरिसीए झाणं झियाइ, तइयाए पोरिसीए अतुरियमचवलसंभंते मुहपोत्तियं पडिले हेति-से लेकर-दिहीए पुरुओ रियं सोहेमाणे जेणेव-इन पदों का
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