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४३४]
श्री विपाक सूत्र
[अष्टम अध्याय
श्रीद । महाणसियस्स-महानसिक-रसोइए के । बहवे- बहुत से । मच्छिया य -- मात्स्यिक - मच्छीमार । वागुरिया य-वागुरिक-जाल में फंसाने का काम करने वाले व्याध अर्थात् जो जालों से जीवों को पकड़ते हैं । साउणिया य-तथा शाकुनिक-पक्षिघातक अर्थात् पक्षियों का वध करने वाले । दिन्नभतिभत्तवेयणा-जिन्हें वेतनरूप से भृति - रुपया पैसा, भक्त --- धान्य और घृतादि दिया जाता हो, ऐसे नौकर पुरुष । कल्लाकल्लि - प्रतिदिन । बहवे-अनेक । सराहमच्छा य श्लक्षणमत्स्यों---कोमलचर्म वाले मत्स्यों, अथवा सूक्ष्ममत्स्यों-छोटे २ मत्स्यों, अथवा मत्स्यविशेषों । जाव-यावत् । पडागातिपडागे य-पताकातिपताको -मस्त्यविशेषों । अए य-अजों- बकरों । जाव-यावत् । महिसे य-तथा महिषों । तित्तिरे- तित्तिरों । जाव -- यावत् । मयूरे य-मयूरों को । जीवितामो-जीवन से । ववरोति ववरोवेत्ता- व्यपरोपित करते हैं- पृथक करते हैं, जीवन से पृथक् कर के । सिरियस्सश्रीद । महाणसियस्स-महानसिक को । उवणेति-अर्पण करते हैं, तथा । से-उस के । अन्ने य - अन्य । बहवे-बहुत से । तित्तिरा य-तितिर । जाव- यावत् । मयूरा य-मयूर । पंजरंसिपिंजरों में । संनिरुद्धा- संनिरुद्ध-बन्द किये हुए। चिट्ठति- रहते थे । अन्ने य-तथा और । बहवे-अनेक । दिन्नभतिभत्तवेयणा-जिन्हें वेतनरूप से रुपया पैसा और धान्य घृतादि दिया जाता था, ऐसे नौकर । पुरिसे-पुरुष । ते-उन । बहवे-अनेक । तित्तिरे य तितिरों । जाव-यावत् । मयूरे य-मयूरों को । जीवंतए चेव-जीते हुओं को ही । निप्पंखेति निप्पंखेत्ता - पक्ष - परों से रहित करते हैं, पंखरहित कर के । सिरियस्स-श्रीद । महाणसियस्स - महानसिक को । उवणेति-अर्पण करते हैं। तते णं-तदनन्तर । से-वह । सिरिए -श्रीद । महाणसिर- महानसिक । बहूणं - अनेक । जलयर - जलचरों - जल में चलने वाले जीवों । थलयर- स्थलचरों-स्थल में चलने वाले जीवों । खहयराणं-खचरों-आकाश में चलने वाले जीवों के । मंसाई-मांसों को । कप्पणीकप्पियाई करेति - कल्पनी-छुरी से कर्तित करता है अर्थात् उन्हें काट कर खण्ड २ बनाता है । तंजहा-जैसे कि । सराहखंडियाणि य-सूक्ष्मखण्ड और । वह-वृत्त-वतुल -- गोल । दीह-दीर्घ-लम्बे । रहस्सखंडियाणि - तथा ह्रस्व -छोटे २ खण्ड, जो कि । हिमपक्कानि-हिम- बर्फ से पकाए गए हैं। जम्म-जन्म से अर्थात् स्वतः ही । घम्म- धर्म-गरमी तथा । मारुय - मारत - वायु से । पक्काणि य-पकाए गए हैं। कालाणि य-तथा जो काले किये गये हैं। हेरंगाणि य-और हिंगुलसिंग़रफ के समान लाल वर्ण वाले किये गये हैं । महिद्वाणि य - जो तक्रसंस्कारित हैं, और । श्राम जगरसियाणि य-जो आमलक -आंवले के रस से भावित हैं, तथा । मुद्दिया- मृद्वीका-द्राक्षा । कविठ्ठ-कपित्थ-कैथ । दालिमरसियाणि य-और अनार के रस से भावित हैं । मच्छरसियाणि य-तथा जो मत्स्यरस से संस्कारित हैं और जो । तनियाणि य-तैलादि में तले हुए हैं । भज्जियाणि य-अंगरादि पर भूने हुए हैं । सोल्लियाणि य-और जो शूलाप्रोत है अर्थात् मूल में पिरो कर पकाए गए हैं, उन को । उवावडावेति-तैयार करता है । अन्ने य-और । बहवे- बहुत से । मच्छरसए य- मत्स्यों के मांसो के रस । एणेज्जरसए य-एणों - मृगों के मांसों के रस । तित्तिर० - तित्तिरों के मांसों के रस । जाव- यावत् । मयूररसए य-- मयूरों- मोरों के मांसों के रस, तैयार करता है । अन्नं च-और । विउलं-विपुल । हरियसाग- हरे साग । उवकावडावेति २- तैयार करता है, तैयार कर के। मित्तस्स रराणो-मित्र नरेश के। भोयणमंडवंसि-भोजनमंडप में-भोजनालय में । भोयणवेलाए- भोजन के समय । उवणेइ--राजा को अर्पण करता था- भोजनार्थ प्रस्तुत किया करता था। अप्पणा वि य णं - और स्वयं भी। से- वह । सिरिए - श्रीद । महाणसिर-महानसिक ।
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