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अष्टम अध्याय
हिन्दी भाषा टीका सहित ।
[५१
तते णं से सोरिए दारए मच्छन्धे जाते, अधम्पिए जाव दुप्पडियाणंदे । तते थे तस्स सोरियमच्छंधस्स बहवे पुरिसा दिन्नमतिमत्तवेयणा कल्लाकल्लिं एगट्ठियाहिं जउणं महणदिं श्रोगाहंति ओगाहित्ता बहूहिं दहगलणेहि य दहमलणेहि य दहमदणेहि य दहमहणेहि य दहवहणेहि य दहपवहणे हे य पयंचुलेहि य पवंपुलेहि य जम्भाहि य तिसराहि य भिसराहि य घिसराहि य विसराहि य हिल्लिरीहि य झिल्लिरीहि य लल्लिरीहि य जालेहि य गलेहि य कूड़पासेहि य वक्कबंधेहि य सुत्तबंधेहि य वालवंधेहि य बहवे सोहमच्छे य जाव पडागातिपडागे य गेएहति गरिहत्ता एगट्टियाउ भरेंति भरित्ता कूलं गाहेति गाहित्ता मच्छखलए करेंति करित्ता
आयवंसि दलयंति । अन्ने य से बहवे पुरिसा दिन्नभतिभत्तवेयणा आयवतत्तेहि मच्छेहि सोल्लेहि य तलितेहि य भज्जितेहि य रायमग्गसि वित्तिं कप्पेमाणा विहरति । अप्पणावि य णं से सोरिए बहूहि सएहमन्छेहि जाव पडागातिपडागेहि य सोल्लेहि य तलिएहि य भज्जिएहि य सुरं च ६ आसाएमाणे ४ विहरति ।
पदार्थ-अन्नया कयाइ-किसी अन्य समय । सयमेव-स्वयं ही । मच्छधमहत्तरगतं-मत्स्यबंधों-मच्छीमारों के महत्तरकत्व-प्रधानत्व को । उवसंपज्जित्ता णं-प्राप्त कर। विहरतिविहरण करने लगा । तते णं-तदनन्तर । से-वह । सोरिए-शौरिक । दारए-बालक । मच्छंधेमत्स्यबन्ध-मच्छीमार । जाते-हो गया, जो कि । अधम्मिए-अधर्मी । जाव-यावत् । दुप्पडियाणंदेदुष्प्रत्यानन्द -अति कठिनाई से प्रसन्न होने वाला, था । तते णं--तदनन्तर । तस्स-उस । सोरियमच्छंधस्स-शौरिक मत्स्यबंध मच्छीमार के। दिनभतिभत्तवेयणा-जिन्हें वेतनरूप से रुपया पैसा और धान्यादि दिया जाता हो, ऐसे । बहवे - अनेक । पुरिसा-पुरुष । कल्जाकल्ति - प्रतिदिन । एगठ्ठियाहिं- छोटी नौकाओं के द्वारा । जउणं - यमुना नामक । महाणदिं - महानदी का ।
ओगाहंति श्रोगाहित्ता-अवगाहन करते हैं - उस में प्रवेश करते हैं, अवगाहन कर के। बहूहिं-बहुत से। दहगलणेहि य-हृदगलन-हद-मील या सरोवर का जल निकाल देने से। दहमलणेहय-हृदम जल के मर्दन करने अर्थात दरिया के मध्य में पौन:पुन्येन परिभ्रमण करने से अथवा जल निकालने पर उस के कीचड़ का मर्दन करने से । दहमदणेहि य-हृदमर्दन अर्थात् थूहर का दूध डाल कर जल को विकृत करने से । वहमहणेहि य - हृदमथन-हृदगत जल को तरुशाखाअो द्वारा विलोडित करने से । दहवहणेहि य-हृदबहन हृद में से नाली आदि के द्वारा जल के बाहिर निकालने से । दहपवहणेाह यहृदप्रवहण - हृदजल को विशेषरूपेण प्रवाहित करने से । पयंचुलेहि य-मत्स्यबन्धनविशेषों से | पवंपलेहि यबहवः पुरुषाः दत्तभृतिभक्त वेतना कल्याकल्यमे कास्थिकाभिर्यमुना महानदीमवगाहन्ते अवगाह्य बहुभिहदगलनश्च हृदमलनैश्च हृदमर्दनैश्च हृदमथनैश्च हृदवहनश्च हृदप्रवहणश्च प्रपंचुलैश्च प्रपंपुलेश्व भाभिश्च त्रिसराभिश्च भिसराभिश्च घिसराभिश्च द्विसराभिश्च हिल्लिरीभिश्च झिल्लिरीभिश्च लल्लिरीभिश्च - जालेश्च गलेश्च कूटपाशेश्च वल्कबन्धैश्च सूत्रबन्धेश्च वाजबन्धैश्च बहून् इलक्ष्णमास्यांश्च यावत् पताकातिपताकाश्च गृह्णन्ति गृहीत्वा नावो भरंति भृत्वां कूलं गाहंते गाहित्वा मत्स्यखलानि कुर्वन्ति कृत्वा आतपे दापयन्ति । अन्ये च तस्य बहवः पुरुषाः दत्तभृतिभक्तवेतनाः प्रातपतप्तमत्स्यैः शूल्यैश्च सलितैश्च भर्जितैश्च (भृष्टेश्च) राजमार्ग वृत्ति कल्पयन्तो विहरन्त । अात्मनापि च स शौरिको बहुभिः श्लदणमत्स्ययावत् पताकातिपताकैश्च शूल्यैश्च तलितेश्च भर्जितैश्च सुरां च ६ आस्वादयन् ४ विहरति ।
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